गढ़वाली भाषा
इतिहास, व्याकरण एवं शब्द संपदा
ध्वनि को उच्चरित करते समय मुखविवर में बाह्य और आभ्यान्तर दोनों प्रकार के प्रयत्न होते हैं। प्राण वायु की गति के आधार पर ध्वनियाँ अल्पप्राण और महाप्राण होती हैं। स्वरतंत्री के स्पंदन के बीच गुजरने के कारण ध्वनि घोष कही जाती है। स्वरों की सहायता से ही व्यंजन उच्चरित होते हैं। स्वर स्वतंत्र रूप से और उसके सहारे व्यंजन शब्द रूप लेता है। भारतीय दर्शन में शब्द को नित्य कहा गया है और उसे आकाश का गुण बतलाया गया है। शब्द ही परब्रह्म है-
अनादिनिधनं ब्रह्म शब्दतत्वं यदक्षरम्।
विर्ततोऽर्थभावेन प्रक्रिया जगतो यतः।।
(भर्तृहरि-वाक्यपदीय)
लोकभाषा गढ़वाली में विभिन्न अनुभूतियों, रंगों, ध्वनियों, गंधों, स्वादों, तथा व्यवहारों से संबंधित शब्दावली का अपना विशिष्ट सौंदर्य है। लोकमाटी में गढ़े गए और लोकजीवन के बीच व्यवहृत हुए ये शब्द गढ़वाली भाषा की अनमोल धरोहर हैं। वर्ष 2007 में अग्रज श्री अरविंद पुरोहित एवं श्रीमती बीना बेंजवाल द्वारा संकलित ‘गढ़वाली हिंदी शब्दकोश’ के प्रकाशन से सुधी पाठकों की उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाएँ मिलीं। कई पाठकों का मानना था कि गढ़वाली सीखने वालों के लिए अभी तक कोई पुस्तक प्रकाशित नहीं हुई है। उनकी ही प्रेरणा से वर्ष 2010 में ‘गढ़वाली भाषा की शब्द संपदा’ नामक पुस्तक का प्रकाशन किया गया। पाठकों ने इस पुस्तक को अपनी सहमति दी और दो वर्ष में ही यह पुस्तक आउट ऑफ प्रिंट हो गई।
पाठकों की प्रेरणा से बीना बेंजवाल जी के साथ मिलकर हिंदी गढ़वाली अंग्रेजी शब्दकोश के निर्माण में लग गये और वर्ष 2018 में इसका प्रकाशन किया गया। इस बीच मुझे लगा कि गढ़वाली भाषा में उच्चारण में भेद है। व्याकरण और गढ़वाली भाषा के इतिहास पर भी कार्य किया जाना चाहिए।
डॉ० गोविन्द चातक, श्री मोहनलाल बाबुलकर तथा डॉ० हरिदत्त भट्ट ‘शैलेश’ का गढ़वाली भाषा की विवेचना पर किया गया कार्य उल्लेखनीय है। गढ़वाली व्याकरण, ध्वनियों तथा शब्द संपदा पर जितना भी कार्य अभी तक हुआ है सन् 1959 में डॉ० गोविन्द चातक द्वारा प्रकाशित ‘गढ़वाली भाषा’ को आधार बना कर ही किया गया है।
गढ़वाली भाषा में ऐसे शब्दों की भरमार है जिनके लिए हिंदी में कोई शब्द नहीं है। जानकारी के अभाव में हिंदी अंग्रेजी या अन्य भाषाओं का मुँह ताकती है। गढ़वाली में 50 के आसपास गंध बोधक शब्द, 32 से अधिक स्वाद बोधक शब्द, 100 के आसपास ध्वन्यर्थक शब्द, 26 से अधिक स्पर्श बोधक शब्द, 60 के आसपास अनुभूति बोधक शब्द और असंख्य संख्यावाची तथा समूह वाचक शब्दावली है। इन शब्दों को अंग्रेजी और गढ़वाली के रोमन में भी दिया गया है।
आज गढ़वाली बोलने वालों की धीरे-धीरे कमी हो रही है। जो कुछ लिखा जा रहा है तथा जो लिख रहे हैं वही पढ़ने वाले भी हैं। गढ़वाली के शब्द-वैभव से परिचित कराते हुए गढ़वाली भाषा का संक्षिप्त इतिहास, व्याकरण तथा बोलचाल के लिए वाक्यांश तथा विभिन्न व्यक्तियों के बीच बातचीत भी इस पुस्तक में दी गई है। गढ़वाल के इतिहास, संस्कृति एवं भाषायी विकास के साथ-साथ गढ़वाली भाषा का प्रारंभिक ज्ञान एवं शब्द-संपदा से परिचित करवाना इस पुस्तक का मूल उद्देश्य है। गढ़वाली के पास लोकोक्तियों का अतुल भंडार है। कुछ समान भाव वाली लोकोक्तियों तथा मुहावरों को भी पुस्तक के अंत में तथा गढ़वाल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की जानकारी भी पुस्तक के प्रारंभ में दी गई है। इस पुस्तक में गढ़वाली भाषा में शब्द-युग्म, पर्यायवाची, विशेषण-विशेष्य, समानता बोधक शब्दावली, शब्द परिवार, अनेकार्थी शब्द, गंध बोधक, ध्वन्यर्थक, स्वादपरक, अनुभूति, स्पर्श बोधक, खेल-खिलौने, संख्यावाची, समूहवाचक शब्दावली तथा अन्य शब्दावलियों को वर्गीकृत करने की कोशिश की गई है। हालांकि यह वर्गीकरण परिचय मात्र है लेकिन भविष्य में इस पर विस्तार से विवेचना करके लिखा जा सकता है।
गढ़वाली पद्य एवं गद्य का संक्षिप्त इतिहास गिरीश सुन्दरियाल जी और धर्मेन्द्र नेगी जी के सहयोग से लिखा गया है। उनका विशेष रूप से आभार प्रकट करता हूँ। श्रीमती बीना बेंजवाल का विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को लिखने में निर्देशन का कार्य किया है और वर्गीकृत शब्दावली तथा व्याकरण निर्माण में अपना सहयोग दिया। लोकोक्ति और मुहावरों के संकलन में बड़े भाई श्री अरविंद पुरोहित जी का आशीर्वाद रहा है। आभारी हूँ मित्र श्री जगदीश प्रसाद सेमवाल (सेवा निवृत्त प्रवक्ता, अंग्रेजी) का जिन्होंने वर्गीकृत शब्दावली के अंग्रेजी में अनुवाद के लिए मार्गदर्शन दिया।
इस कार्य में कई विद्वान् लेखकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं साथियों का मार्गदर्शन व सहयोग रहा है। मैं सर्व प्रथम बड़े भाई श्री अरविंद पुरोहित, श्री नरेन्द्र सिंह नेगी, डॉ० नन्दकिशोर हटवाल, श्री मोहन प्रसाद डिमरी, श्री भीष्म कुकरेती, श्री मदनमोहन डुकलाण, श्री देवेन्द्र जोशी, श्री वीरेन्द्र पंवार, श्री शूरवीर सिंह रावत, श्री कीर्ति नवानी, डॉ० रामप्रसाद भट्ट, श्री देवेश जोशी, श्री नेत्र सिंह असवाल, डॉ० डी० आर० पुरोहित, श्री गणेश खुगशाल ‘गणी’, डॉ० प्रीतम अपछ्याण, डॉ० जगदम्बा प्रसाद कोटनाला, डॉ० प्रकाश थपलियाल, डॉ० सविता मोहन, श्री नरेन्द्र कठैत, श्री दिनेश ध्यानी, श्री प्रवीण कुमार भट्ट, सुश्री कम्मी बड़वाल, श्रीमती शकुन्तला राणा, श्रीमती रेखा सेमवाल, श्रीमती शीला सारस्वत, श्रीमती बीना कण्डारी, श्रीमती प्रेमलता सजवाण, श्रीमती तारा जोशी, श्रीमती नीता कुकरेती, श्रीमती सुमित्रा जुगलान, श्रीमती कान्ता घिल्डियाल, श्रीमती मधुरवादिनी तिवारी, श्री संदीप रावत, श्री गीतेश नेगी, डॉ० सत्यानन्द बडोनी के ऋणी हैं जिन्होंने हमें अपना अमूल्य सहयोग दिया।
भाई श्री लोकेश नवानी, श्री निरंजन सुयाल, श्री विमल नेगी, श्री शान्ति प्रकाश ‘जिज्ञासु’, श्री हरीश जुयाल ‘कुटज’, श्री जगदम्बा चमोला, श्री मुकेश नौटियाल, श्री ओमप्रकाश सेमवाल, श्री कुलानंद घनशाला, श्री नन्दन राणा नवल, श्री महावीर रवांल्टा, श्री जयप्रकाश पंवार ‘जेपी’, श्री मधुसूदन थपलियाल, श्री कल्याण सिंह रावत ‘मैती’, डॉ० नन्द किशोर ढौंडियाल ‘अरुण’, डॉ० अरुण कुकसाल, श्री शिव दयाल शैलज, श्री सुधीर बर्त्वाल, श्री हेमचन्द्र सकलानी एवं पत्रकार- डॉ० ओ० पी० जमलोकी, श्री शैलेन्द्र सेमवाल, श्री दिनेश शास्त्री, श्री मनोज इष्टवाल, श्री विनय के० डी०, श्री ओ० पी० बेंजवाल, श्री हरीश कण्डवाल ‘मनखी’ श्री वीरेन्द्र डंगवाल ‘पार्थ’ के आभारी हैं जिनका सहयोग सदैव हमें मिलता रहा। विनसर पब्लिशिंग कं०, देहरादून से प्रकाशित इस पुस्तक में 344 पृष्ठ और मूल्य ₹ 295.00 है।
रमाकान्त बेंजवाल
बी-ब्लाक, लक्ष्मण सिद्ध कॉलोनी, हर्रावाला, देहरादून।