आयकर अधिनियम की धारा 43(बी) 1(एच) के कारण पिस रहे एमएसएमई के व्यापारी: राजेश्वर पैन्यूली

नई दिल्ली। फेडरेशन ऑफ आल इंडिया व्यापार मंडल के राष्ट्रीय प्रवक्ता सीए राजेश्वर पैन्यूली ने एमएसएमई  व्यापारियों को इनकम टैक्स की धारा 43(बी) एच से निजात दिलवाने की मोदी सरकार से अपील की।

उन्होंने कहा कि आयकर अधिनियम की धारा 43 (बी) के 1(एच) में एक संशोधन पेश किया गया है। यह खंड निर्धारित करता है कि एमएसएमई पर बकाया कोई भी भुगतान, यदि 45 दिनों के भीतर नहीं किया जाता है, तो भुगतान किए जाने तक कर कटौती के लिए पात्र नहीं होगा। सरल शब्दो में धारा 43बी खंड (एच) ये कहता है कि MSME व्यापारियों का भुगतान, खरीद के 45 दिन के अंदर अगर खरीदार ने नहीं किया तो उसे ‘खरीद’ नहीं माना जाएगा। इसका परिणाम ये होगा कि खरीदार को लगभग 30% टैक्स का अतरिक्त भुगतान करना होगा। इसको ऐसे समझ सकते है माना की एक व्यापारी ने अगर MSME में रजिस्टर्ड व्यापारी से रुपए, 100/- का समान खरीदा और उसका भुगतान 45 दिन में नहीं किया तो MSME में रजिस्टर्ड व्यापारी उस रुपए 100/- की खरीदारी को अमान्य कर सकता है अथवा उसे खरीद नहीं माना जायेगा और खरीद्दार व्यापारी को इस खरीद पर लगभग रुपए, 30/- का इनकम टैक्स का अतरिक्त भुगतान करना होगा (ये सिर्फ उदहारण के लिए है टैक्स इनकम टैक्स स्लैब के अनुसार कम या ज्यादा भी हो सकता है। 

अधिनियम में एक नया प्रावधान जिसका उद्देश्य सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को माल या सेवाओं की आपूर्ति के 45 दिनों के भीतर भुगतान सुनिश्चित करना है, के परिणामस्वरूप एक अजीबोगरीब समस्या उत्पन्न हो गई है। 43बी में, खंड (एच) के कारण MSME व्यापारियों को अन्य बहुत सी व्यवहारिक (Practical) दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है। आमतौर पर बिजनेस की प्रैक्टिस ही ये हैं कि भुगतान 3-9 महीनों में किया जाता है। आयकर अधिनियम के इस संशोधन में 45 दिन के प्रतिबन्ध से खरीदार व्यापारियों को नकदी प्रवाह (Cash-Flow) की दिक्कतें आने लग गई है। खरीददार व्यापारियों ने इस नकदी प्रवाह (Cash-Flow) और धन की अतिरिक्त-लागत (Additional Cost of Funds) की समस्या के समाधान के लिए MSME में रजिस्टर्ड व्यापारियों से खरीददारी ही बंद करनी शुरू कर दी। क्यूंकि उन्हें लगभग उसी लागत मूल्य पर मार्केट में और दूसरे सप्लायर भी उपलब्ध हैं। इस तरह सरकार ने जिस संसोधित प्रावधान से MSME की मदद करनी चाही। उसके दूरगामी दुष्प्रभाव ने बड़े स्तर पर MSME को नुकसान पहुंचना शुरू कर दिया है। MSME व्यापारियों ने इस समस्या से बचने के लिए और अपने काम धंधे की प्रगति के लिए अपने आपको रजिस्ट्रेशन से हटाना शुरू कर दिया है।

अब ऐसा लगने लगा कि MSME को समय पर भुगतान सुनिश्चित करने के लिए आयकर की धारा 43B (h) बाधा उत्पन्न करने वाली बन गई है। कई कर-विशेषज्ञों का मानना है कि भुगतान की समय सीमा (45 दिन का समय) अवास्तविक है और सरकार को इसे कम से कम रिटर्न दाखिल करने के समय तक बढ़ाने पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। इस प्रकार, बजट 2023-24, आय

(FAIVM) ने नए प्रावधान में सुधारीकरण के लिऐ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जिसपर पर माननीय न्यायलय ने कहा कि आप इस समस्या को ले कर पहले हाई कोर्ट जाएं। फैडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल केंद्रीय एमएसएमई मंत्रालय से समाधान के लिए संपर्क कर में है। फैडरेशन ऑफ ऑल इंडिया व्यापार मंडल ने सभी हितधारकों यानि MSME व्यापारियों से ‘आयकर अधिनियम से उत्पन्न होने वाले मुद्दों को हल करने के तरीके सुझाने और संभावित वैकल्पिक तरीकों के बारे में भारत सरकार को सूचित करने के लिए’ अपील की है।

वास्तव में, ये पूरा कानून अच्छी नियत के बावजूद दंडात्मक धारणा पर आधारित है की दंडात्मक प्रावधानों के कारण खरीददार भुगतान 45 दिन में MSME कर देगा। लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं हुआ। मेरी व्यक्तिगत राय हैं कि सकारात्मक प्रावधान (Positive Provisions) इनकम टैक्स कानून में बदलाव ला करके ही किया जा सकता है। जैसे कि 45 दिन में भुगतान पर टैक्स में रुपए, 100/- का खर्चा रुपए 110/- खर्चा माना जाए, आदि-आदि. इससे खरीदार व्यापारियों को धन की लागत (Cost of Funds) में राहत मिलेगी और एक तरह से (Incentives) प्रोत्साहन भी मिलेगा।


 

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