अग्निवीर योजना धीरे धीरे बन रही है चुनावी मुद्दा, बेरोजगारी बढ़ने से युवा हैरान भाजपा बैकफुट पर

देहरादून।  उत्तराखण्ड में पूर्व सैनिकों की तादात बड़ी संख्या में है जिस वजह से पूर्व सैनिकों को बड़ा वोट बैंक माना जाता है। यही वजह है कि भाजपा और कांग्रेस समेत सभी राजनीतिक दल पूर्व सैनिकों को रिझाने का प्रयास करते हैं। भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले शहीद सम्मान यात्रा निकाल चुकी है, तो कांग्रेस की ओर से कई सैनिक सम्मेलन किए जा चुके हैं, ताकि पूर्व सैनिकों के वोट बैंक को साधा जा सके।

पूर्व में राज्य की सियासत में लेफ्टिनेंट जनरल  टीपीएस रावत  व मेजर जनरल बी सी खंडूड़ी जैसे पूर्व सैनिकों को मौका भी मिला। जिन्होंने खुद को साबित भी किया, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में अग्निवीर योजना का मुद्दा गरमाया हुआ है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इसे लेकर हमलावर है। वहीं, भाजपा इस पर सफाई देते हुए योजना को बेहतर बता रही है। हालांकि, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि अगर हमें इसमें कोई कमियां दिखती हैं तो हम उन्हें सुधारने के लिए तैयार है।

उधर टिहरी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी बॉबी पंवार ने भाजपा और कांग्रेस पर युवाओं के साथ छल करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में सरकारों ने खाली पद तक भरने में सालों लगा दिए जिससे कई  युवाओं की उम्र ही भर्ती के इंतजार में निकल गई। नियमित नियुक्तियां करने की बजाय आउट सोर्सिंग के माध्यम से युवाओं का शोषण किया जा रहा है।

उत्तराखण्ड के गढ़वाल और कुमाऊं से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाने की तैयारी करते हैं। अग्निवीर योजना से कई युवाओं को धक्का लगा है, अग्निवीर योजना में न केवल सरकारी पद खत्म किया गया है, अग्निवीरों की संख्या भी पूर्व सैनिक भर्तियों की संख्या से कम कर दी गई है। उत्तराखण्ड में एक बड़ी जनसंख्या के लिए सेना ही अब तक सामाजिक और आर्थिक जरिया थी। अग्निवीर योजना ने इस आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा को खत्म कर दिया है। उधर अग्निवीरों के द्वारा सेना के अनुशासन में खलल की बातें भी मीडिया में आ रही हैं, जहाँ अग्निवीरों ने दिए गए टास्क को करने से मना कर दिया और बोल दिया कल भी निकाला जाना है तो आज ही निकाल दो।

नेपाल ने तो पहले ही अपने लोगों को अग्निवीर योजना के भर्ती होने से मना कर दिया है। 

इसके अलावा पूर्व सैनिकों के वन रैंक वन पेंशन समेत कुछ अन्य मुद्दे भी हैं। प्रदेश में एक लाख 39 हजार से अधिक पूर्व सैनिक हैं। इसके अलावा अन्य सशस्त्र बलों के पूर्व जवानों की संख्या भी अच्छी खासी है। हर राजनीतिक दल की इन पर नजर है। यही वजह है कि चुनाव में पूर्व सैनिकों के मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जा रहा है। मुद्दे हल करने की कितनी ईमानदार कोशिश की गई ये अलग बात है।

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