मामले के कोर्ट में विचाराधीन होने के बावजूद एनएच घोटाले के मुख्य आरोपी डी.पी. सिंह को क्लीन चिट मिलना मोदी राज में घोटालेबाजों को खुली छूट देने समान: उविपा

रुद्रपुर। उत्तराखण्ड  शासन ने एनएच – 74 घोटाले में नामित जांच अधिकारी की जांच आख्या के आधार पर मुख्य आरोपी पीसीएस अफसर दिनेश प्रताप सिंह को सभी आरोपों पर क्लीन चिट दे दी है। यही नहीं उनके खिलाफ चल रही अनुशासनिक कार्यवाही को बिना किसी दंड अधिरोपण के खत्म कर दिया गया है। साथ ही न्यायालय में उनके खिलाफ अभियोजन चलाने की पूर्व में दी गई अनुमति को भी निरस्त कर दिया गया है। उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने इसे घोटाला करने वालों को मोदी राज में खुली छूट देना बताया। पार्टी का मानना है कि हाई कोर्ट से राहत न मिलने के बाद इस तरह की क्लीन चिट मोदी धामी डबल इंजन सरकार के असली इरादों की पुष्टि करती है।

मार्च 2017 को तत्कालीन कमिश्नर डॉ. सेंथिल पांडियन ने करोड़ों रुपये के घोटाले का पर्दाफाश किया था। तत्कालीन एडीएम प्रताप शाह ने सिडकुल चौकी में एनएचएआई के अधिकारी, कर्मचारियों के साथ ही सात तहसीलों के तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार और कर्मचारियों के खिलाफ केस दर्ज कराया था। तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने एसआईटी का गठन किया था। इस घोटाले में दो आईएएस और पांच पीसीएस अफसर निलंबित किए गए। 30 से अधिक अधिकारी, कर्मचारी, दलाल और किसानों को जेल जाना पड़ा था।

एसआईटी ने तत्कालीन एसएलओ और पीसीएस अफसर दिनेश प्रताप सिंह को मुख्य आरोपी बनाया था। करीब 14 महीने तक डीपी सिंह को जेल में रहना पड़ा था। इस घोटाले में ईडी और आयकर विभाग भी सक्रिय हुआ था। अधिकारियों और किसानों की करोड़ों रुपयों की संपत्ति को अटैच किया गया। एसआईटी की ओर से वर्ष 2019 में घोटाले की चार्जशीट न्यायालय में दाखिल की गई। एसआईटी की जांच में 400 करोड़ का घोटाला उजागर हुआ था। यह मामला अदालत में विचाराधीन है।

इधर शासन ने 25 जनवरी 2024 को इस मामले में जांच अधिकारी नामित किया था। जांच अधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर घोटाले के मुख्य आरोपी बनाए गए पीसीएस अफसर दिनेश प्रताप सिंह को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया गया है। अपर मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन की ओर से 12 अप्रैल को इसका आदेश भी जारी किया जा चुका है। इसके साथ ही 17 जनवरी 2018 को शासन की ओर से न्यायालय में डीपी सिंह के खिलाफ अभियोजन चलाने की अनुमति को निरस्त कर दिया है। इधर संयुक्त निदेशक विधि की ओर से भी भ्रष्टाचार अधिनियम कोर्ट को भी अवगत करा दिया गया है।

पिछले साल हाईकोर्ट से नहीं मिली थी राहत

एनएच-74 घोटाले में दिनेश प्रताप सिंह सहित दस आरोपियों ने पिछले साल हाईकोर्ट में निचली अदालत की ओर से ईडी को अलग-अलग शिकायतों पर केस दर्ज करने के आदेश को चुनौती दी थी। इस आदेश को गलत करार दिया था लेकिन हाईकोर्ट ने निचली अदालत के आदेश के सही ठहराते हुए याचिका को निरस्त कर दिया था।

एनएच घोटाले में मुआवजे की मोटी रकम के लिए कागजों में खेल किए गए थे। अफसर, कर्मचारी, दलालाें और किसानों ने सांठगांठ से कृषि भूमि को बैक डेट में अकृषि दर्शाया था। इससे मिले करोड़ों के मुआवजे से कमीशन की बंदरबांट हुई थी। इस घोटाले में चुकटी देवरिया स्थित टोल प्लाजा के शिफ्टिंग का खेल भी हुआ था। राज्य गठन के बाद पहली बार पांच पीसीएस अफसरों को जेल जाना पड़ा था।

मुख्य आरोपी को ही बेदाग बता दिया

एनएच घोटाले में एसआईटी की ओर से मुख्य आरोपी बनाए गए दिनेश प्रताप सिंह को शासन से क्लीन चिट और अभियोजन की अनुमति निरस्त होने के बाद बड़ा सवाल उपज रहा है। इस घोटाले में चार अन्य पीसीएस अफसरों के साथ ही अधिकारी, कर्मचारी और किसान आरोपी हैं। जब मुख्य आरोपी को क्लीन चिट मिल चुकी है तो इसको बाकी अफसर भी आधार बना सकते हैं। हालांकि कानून के जानकार मान रहे हैं कि घोटाले में इस तरह की क्लीन चिट देने का निर्णय अपने आप में अनूठा है।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने इसे मोदी राज के अनोखे भ्रष्टाचार की संज्ञा दी। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के अध्यक्ष मुजीब नैथानी ने कहा कि मामला एफआईआर दर्ज होने के बाद कोर्ट में चल रहा है, ऐसे में आरोपियों को कोर्ट से ही न्याय मिलना चाहिए। मोदी सरकार में मुख्य आरोपी को इस तरह बेदाग घोषित कर देना बताता है कि मुख्य आरोपी के पास ऐसा कोई मसाला था जिससे मोदी सरकार के भ्रष्टाचार की पुष्टि हो जाती, इसलिए इस तरह का रास्ता अपनाया गया। मुजीब नैथानी ने कहा कि यदि डीपी सिंह वाकई निर्दोष हैं तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करें , नहीं तो स्पष्ट है कि मोदी राज में बड़े बड़े घोटाले दबा दिए जा रहे हैं, और विपक्ष चुप है।

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