राष्ट्रीय पार्क के कारण विकास से दूर हैं 42 गाँव, कैसे रोक सकेगी लापरवाह सरकारें पलायन: उविपा

उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जनपद के दूरस्थ मोरी विकासखंड के 42 गाँवों को आज भी गोविंद पशु विहार वन्य जीव अभ्यारण के कड़े नियमों के कारण अपने हक नहीं मिल पा रहे हैं। स्थिति यह है कि कई गाँव में आज भी जल जीवन मिशन के कार्य अधर में लटक गए हैं। मोरी विकासखंड के पर्वतीय क्षेत्र के करीब 42 गाँव गोविंद पशु विहार वन्य जीव अभ्यारण्य के तहत आते हैं। वर्षों से ग्रामीण मांग कर रहे हैं कि उन्हें पर गोविंद पशु विहार वन्य जीव अभ्यारण के कड़े नियमों से बाहर किया जाए लेकिन आज तक प्रदेश और केंद्र सरकार की ओर से इस पर कोई कदम नहीं उठाया गया है।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने कहा कि जंगल से संबंधित अधिकारों से राष्ट्रीय पार्क के कड़े नियमों के कारण मूल निवासियों को वंचित रहना पड़ता है। जैसे अन्य स्थानों पर ग्रामीणों को लकड़ी के लिए वन विभाग से पेड़ फ्री ग्रांट पर उपलब्ध कराए जाते हैं, लेकिन इन 42 गाँवों में आज भी यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।

वहीं राष्ट्रीय पार्क के सख्त नियमों के कारण विकास कार्य प्रभावित होते हैं। लिवाडी फिताड़ी गाँव के लिए वर्षों से 16 किलोमीटर सड़क का निर्माण नहीं हो पाया है। राजपाल रावत का कहना है कि केंद्र सरकार की जल जीवन मिशन की योजना भी कई गाँवों में लटकी हुई है, क्योंकि पानी का स्रोत जंगलों में है। लेकिन गोविंद पशु विहार वन्य जीव अभ्यारण्य के सख्त नियमों के तहत आज तक इन योजनाओं के निर्माण के लिए अनुमति नहीं मिल पा रही है।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने आरोप लगाया कि राष्ट्रीय पार्कों में भी हक खत्म नहीं किए गए हैं, उसके बावजूद अगर सरकार मूल निवासियों को उनके हक नहीं दे पा रही है तो इसका मतलब साफ है कि मोदी सरकार की नियत और नीति में अंतर है।

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