कोटद्वार। उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने हाई कोर्ट नैनीताल की एक बेंच आईडीपीएल ऋषिकेश किये जाने के संदर्भ में उठ रहे सवालों और राजनैतिक चुप्पी को प्रदेश के नेताओं की खुदगर्जी और राजनैतिक अदूरदर्शिता करार दिया। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के अध्यक्ष मुजीब नैथानी ने कहा कि इन 24 सालों में उत्तराखण्ड का यह दुर्भाग्य रहा कि उत्तराखण्ड की जनता उत्तराखण्ड को असली उत्तराखण्डी मुख्यमंत्री नहीं दे पाई।
मुजीब नैथानी ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य बनने के घोर विरोधी मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में बनी कौशिक समिति ने भी जनभावनाओं, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक एवं भौगौलिक परिस्थियोँ के मद्देनजर गैरसैंण को ही राजधानी के लिए उपयुक्त बताया था। उन्होंने कहा कि कौशिक समिति की सिफारिशों का विरोध करने का ना कोई औचित्य था न कोई वैधानिक कारण, उसके बावजूद भी सत्ता में आने के बाद भाजपा कांग्रेस ने गैरसैंण को राजधानी घोषित नहीं किया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने उस वक्त गैरसैंण को राजधानी घोषित कर दिया होता, भले ही कुछ सालों के लिए राजकाज देहरादून से ही चला लिया होता तो आज प्रदेश की यह स्थिति न होती।
उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की जनता द्वारा उत्तराखण्डी नेतृत्व न चुने जाने से अधिकारियों की पौ बारह हुई और उन्होंने सभी धाणी देहरादून कर दी। मुजीब नैथानी ने कहा कि गढ़वाल कमिश्नर और आईजी तक पौड़ी नहीं बैठते हैं, देहरादून के कैंप कार्यालय पहाड़ के लिए काला पानी साबित हुए हैं।
उन्होंने कहा कि गढ़वाल तो गढ़वाल कुमाउँ मंडल के बड़े बड़े विभाग भी बिना किसी औचित्य के देहरादून शिफ्ट कर दिए गए और गढ़वाल तो गढ़वाल कुमाऊं के नेताओं के मुंह में दही जम गई। अगर यही हाल रहे तो भविष्य में पहाड़ में एक भी समर्थ गढ़वाली कुमाऊनी नजर नहीं आयेगा। उन्होंने गैरसैंण को तुरंत राजधानी घोषित करने की मांग की।
उन्होंने कहा कि राज्य बनने के बाद आरटीओ कार्यालय के भवन में परिवहन आयुक्त कार्यालय खुला था, उस वक्त ट्रांसपोर्ट कमिश्नर जियालाल थे। करीब डेढ़ साल तक परिवहन आयुक्त कार्यालय हल्द्वानी में चला, बाद में यह कार्यालय देहरादून शिफ्ट हो गया। इसी तरह वन विभाग के कई कार्यालय नैनीताल और हल्द्वानी में थे, जिन्हें एक के बाद एक कर देहरादून पहुंचा दिया गया। नैनीताल में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक का कार्यालय होता था, जहां से वन्यजीव के संरक्षण, रेस्क्यू आपरेशन की अनुमति और दिशा- निर्देश देने का काम होता था। करीब नौ साल पहले यह कार्यालय भी देहरादून शिफ्ट हो गया। हल्द्वानी में रामपुर रोड पर मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि नियंत्रण का कार्यालय होता था, जहां से प्रदेश में वनाग्नि नियंत्रण का कार्यक्रम संचालित होता था। यह कार्यालय भी देहरादून शिफ्ट हो गया। इसी भवन में मुख्य वन संरक्षक पर्यावरण का कार्यालय था जिसे बाद में देहरादून शिफ्ट कर दिया गया। प्रमुख वन संरक्षक वन पंचायत का कार्यालय, हल्द्वानी में है, पर इसका भी कैंप कार्यालय देहरादून के मुख्यालय में खोला गया है। इसका भवन और बदहाली उपेक्षा को बया कर रहा है। हल्द्वानी में श्रम निदेशालय है जरूर, पर यहां पर उत्तराखण्ड भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड का दफ्तर था, जिसे करीब पांच साल पहले देहरादून शिफ्ट कर दिया गया था।