गढ़वाली कुमाऊँनी समाज को अपनी संस्कृति समाज की रक्षा के लिए मूल निवास की मांग जोर शोर से उठानी होगी: जोशी

कोटद्वार। उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने की उत्तराखण्ड में मूल निवास 1950 लागू करने की मांग। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चन्द्र जोशी ने कहा कि गढ़वाली कुमाऊँनी समाज अपने ही राज्य में अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है और उसकी वजह राज्य निर्माण के समय भाजपा द्वारा डेमोग्राफिक बदलाव के लिए दो जिलों को इस राज्य में समाहित किया जाना रहा है।

एडवोकेट जोशी ने कहा कि इन दो जिलों की जनसंख्या गढ़वाल कुमाऊँ के किसी भी जिले से कम नहीं थी और 2002 के बाद 2012 के हुए परिसीमन ने गढ़वाल कुमाऊँ की आकांक्षाओं का गला घोट दिया। विषम भौगोलिक परिस्थितियों में मात्र जनसंख्या के आधार पर परिसीमन किए जाने से प्रदेश की डेमोग्राफी में डेंजरस बदलाव आने शुरू हो गए और गढ़वाली कुमाऊनी इस बदलाव से अपने ही प्रदेश में अपने समाज संस्कृति को आगे नहीं बढ़ा पा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि गढ़वाली कुमाऊनी को अब तक भाषा का दर्जा मिल गया होता मगर डेमोग्राफिक बदलाव की वजह से सांसद अजय भट्ट बंगाली भाषा को पढ़ाये जाने और नमो शूद्र को अनुसूचित जाति घोषित करने के लिए जोर शोर से मामला उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार बनाम यूनियन ऑफ इंडिया में सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1967 में स्पष्ट कर दिया था कि जिस जाति का शोषण जिस राज्य में हुआ है उसी राज्य में उस जाति को आरक्षण का लाभ मिल सकता है, ऐसे में बांग्लादेश से 1971 में आये लोगों को आरक्षण का लाभ मोदी सरकार केवल वोट बैंक के लिए देना चाहती है जिससे यहाँ के मूल निवासियों के अधिकारों पर विपरीत असर पड़ेगा।

उन्होंने कहा कि असम में 6वीं अनुसूची लागू होने के बाद भी मोदी की डबल इंजन सरकार ने अनुसूचित जनजाति की सैकड़ों एकड़ भूमि निजी कंपनी को दे दी थी, जिस पर असम हाई कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए रोक लगा दी है।

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