कब्रिस्तान से कब्जा न हटाने पर हाई कोर्ट ने भाजपा सरकार पर लगाया तीस हजार रुपए का जुर्माना, उविपा ने कहा केवल गरीब गढ़वालियों के घर तोड़ने में दिखाती है तेजी

नैनीताल: उच्च न्यायालय नैनीताल ने  सरकार द्वारा प्रगति आख्या माननीय न्यायालय में दाखिल नहीं किए जाने पर सरकार पर तीस हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया है।

मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने कब्रिस्तान में हुए अतिक्रमण मामले में न्यायालय के पूर्व के आदेश के बावजूद प्रगति रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर राज्य सरकार पर तीस हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

काशीपुर की मौलाना आजाद सेवा समिति ने 2015 में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि 1375 फसली  वर्ष की बंदोबस्त दस्तावेजों  में उस जगह पर कब्रिस्तान दर्ज है, लेकिन कब्रिस्तान की भूमि पर लोग अवैध रूप से कब्जा कर रहे हैं।

नियमों के अनुसार कब्रिस्तान के प्रकृति को बदला नहीं जा सकता, यानी उसकी जगह भूमि का कोई दूसरा उपयोग नहीं किया जा सकता है, इसलिए ये कब्जे नहीं किये जा सकते।

याचिका में कहा कि सेटेलमेंट ऑफिसर कभी भी बंदोबस्त से खसरा नंबर बदल नहीं सकता। इस जनहित याचिका को 16 मार्च 2015 को निस्तारित करते हुए न्यायालय ने जिलाधिकारी ऊधमसिंह नगर को अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए थे।

राज्य सरकार ने इस आदेश के चार वर्ष बाद एक पुर्नविचार याचिका दाखिल की जिसे न्यायालय ने स्वीकार करते हुए सरकार को जवाब सहित प्रगति रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।

लेकिन 2020 से अभी तक प्रगति रिपोर्ट पेश नहीं की गई। जिसपर बुधवार को न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए सरकार पर पचास हजार रूपये का जुर्माना ठोक दिया। सरकारी अधिवक्ता के अनुरोध के बाद जुर्माने की राशि को तीस हजार रुपया किया गया।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने कहा कि भाजपा ने खुद ही कोटद्वार में कब्रिस्तान की भूमि खरीद की है, जबकि कब्रिस्तान, नदी नाले की प्रकृति बदली नहीं जा सकती है। भाजपा राज में सरकारी भूमियों में सबसे ज्यादा अतिक्रमण हुए मगर सख्ती और फुर्ती केवल सड़क किनारे रोजगार कर रहे युवा गढ़वालियों की दुकानों को तोड़ने में दिखाई गई।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *