रांची। झारखण्ड उच्च न्यायालय के फैसले से मोदी सरकार को कड़ा झटका लगा है। झारखण्ड उच्च न्यायालय ने झारखण्ड जमीन घोटाले में झारखण्ड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर ईडी द्वारा लगाए गए को स्पष्ट रूप में नकार दिया।
झारखंड उच्च न्यायालय ने बेल हियरिंग के दौरान कहा कि पूरे केस से पता चलता है कि प्रार्थी विशेष रूप से या अप्रत्यक्ष रूप से 8.86 एकड़ भूमि के अधिग्रहण और कब्जे के साथ-साथ “अपराध की आय” से जुड़े होने में शामिल नहीं है। किसी भी रजिस्टर/राजस्व रिकॉर्ड में उक्त भूमि के अधिग्रहण और कब्जे में याचिकाकर्ता की प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई संकेत नहीं है। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि याचिकाकर्ता ने 2010 में उक्त भूमि का अधिग्रहण किया था और उस पर उसका कब्जा था, तो उस समय वह सत्ता में नहीं था, तो भूमि से विस्थापितों द्वारा अपनी शिकायत के निवारण के लिए अधिकारियों से संपर्क न करने का कोई कारण नहीं था। हाई कोर्ट ने आगे कहा, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का यह दावा कि उसकी समय पर की गई कार्रवाई ने अभिलेखों में जालसाजी और हेराफेरी करके भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोका है, इस आरोप की पृष्ठभूमि में विचार करने पर एक अस्पष्ट कथन प्रतीत होता है, कि भूमि पहले से ही अधिग्रहित थी और याचिकाकर्ता द्वारा उस पर कब्जा कर लिया गया था।
अंत में झारखंड हाई कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा- “प्रार्थी को जमानत देने से कोई हानि नहीं होने वाली है”।
झारखण्ड में आगामी अक्टूबर नवम्बर में चुनाव होने वाले हैं, ऐसे में उच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद भाजपा बैकफुट पर आ गई है। भाजपा नेता हेमंत बिस्वा सरमा वहां ऑपरेशन लोटस की तैयारी में बताए जा रहे थे, जिसकी भनक लगते ही सात जुलाई को प्रस्तावित मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण कार्यक्रम को आनन फानन में ही करना पड़ा।