देहरादून। शासन ने दरोगा भर्ती धांधली में निलंबित हुए 2015 बैच के 20 दरोगाओं को एक साल बाद बहाल कर दिया है। पिछले साल जनवरी में सभी 20 दरोगाओं को निलंबित कर दिया गया था। उत्तराखण्ड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की परीक्षाओं में धांधली की जांच के वक्त 2015 में हुई सीधी भर्ती में भी धांधली की बात सामने आई थी।
इसके बाद पुलिस मुख्यालय ने इस मामले में विजिलेंस से जांच कराने की संस्तुति की थी। विजिलेंस में प्राथमिक जांच के बाद 8 अक्टूबर 2022 को मुकदमा दर्ज किया था। इसके बाद पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर 20 दरोगाओं को निलंबित कर दिया गया था।
एक साल से ज्यादा लम्बे समय से निलंबित सभी दरोगाओं को बहाल करने के आदेश दिए हैं।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने दरोगाओं को बहाल करने पर उठाए पुलिस मुख्यालय पर सवाल। पूछा कि बतायें मुख्यालय के अधिकारी काबिल नहीं हैं या विजिलेंस के?
पहला सवाल तो यह है कि विजिलेंस ने प्राथमिक जांच के बाद 8 अक्टूबर 2022 को मुकदमा दर्ज किया था। यानी कि जिन दरोगाओं को निलंबित किया गया था, उनके खिलाफ प्राथमिक स्तर पर ही जॉच में साक्ष्य पाए गए थे। ऐसे में जांच पूरी हो जाने पर यह कह देना कि उनके खिलाफ साक्ष्य नहीं मिले, बिल्कुल स्पष्ट करता है, कि यहां भी जॉच में कहीं धांधली हो गई है। और अगर उनके खिलाफ ऐसे स्पष्ट साक्ष्य/सबूत नहीं मिले तो उनको 01 साल तक निलंबित करने का फैसला किस वजह से लिया गया था? आखिर वे कौन से कारण थे कि उस समय उनको उनके खिलाफ इतने साक्ष्य थे, कि उनके खिलाफ एफआईआर भी दर्ज हुई और उनको निलंबित भी कर दिया गया। और अब जांच पूरी होने पर यह कहा जाना कि उनके खिलाफ कोई स्पष्ट सबूत/साक्ष्य नहीं मिले, यह स्पष्ट बताता है कि उस समय छवि बचाने के लिए उनको निलंबित किया गया और अब उनको बहाल कर दिया गया है। यानी कि हाकम का राज कायम है।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी का मानना है कि दरोगा भर्ती घोटाले की जांच में भी घोटाला हो गया है, इसलिए उत्तराखण्ड विकास पार्टी दरोगा भर्ती घोटाले की सीबीआई जांच करने की मांग करती है।
उत्तराखण्ड की विजिलेंस जांच के हाल सबको पता है, इसीलिए माननीय हाई कोर्ट नैनीताल भी दो मामलों की जांच सीबीआई को सौंप चुका है।