इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक याचिका के निस्तारण के संबंध में यह देखा कि रिजर्व बैंक आफ इंडिया के द्वारा बनाई गई गाइडलाइंस के बावजूद बैंक मनमाने ढंग से लोगों से ब्याज वसूली कर रहे हैं, और गाइडलाइन बनाए जाने के बावजूद रिजर्व बैंक आफ इंडिया उस गाइडलाइन को लागू करने के संबंध में कोई कार्यवाही नहीं कर रहा है।
माननीय इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की बेंच ने यह ऑब्जर्व किया कि आश्चर्यजनक रूप से रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने जो गाइडलाइन इशू की हुई है उस गाइडलाइन को लागू करने के संबंध में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा कुछ भी नहीं किया जा रहा है ।
बैंकों द्वारा उपभोक्ताओं से मनमानी ढंग से लिए जा रहे ब्याज के संबंध में रिजर्व बैंक आफ इंडिया मूक दर्शक की भूमिका निभाता रहा है।
A Bench of Justices Mahesh Chandra Tripathi and Prashant Kumar observed,
“Surprisingly, RBI had been issuing guidelines but has done nothing for the implementation of the same. They have just been a mute spectator allowing the banks to charge arbitrarily a very high rate of interest.”
याचिका में रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया की बैंकिंग रेगुलेटर होने की भूमिका के संबंध में माननीय हाई कोर्ट की बेंच ने कहा कि यद्यपि बेनिफिट ऑफ डाउट बैंक को दे दिया जाए कि वह ब्याज दर अपने हिसाब से वसूलने के लिए स्वतंत्र हैं । मगर उसके बावजूद यह रिजर्व बैंक आफ इंडिया की कर्तव्य है कि वह यह देखें कि उपभोक्ताओं को उच्च ब्याज दरों के वजह से दिक्कतों का सामना न करना पड़े।
Further discussing RBI’s responsibility as the banking regulator in the country, the Court said,
“Even if the benefit of doubt is given to the bank that they are free to charge the interest rate but it is duty of the RBI to see that the customers are not inconvenienced by huge rate of interest charged by the banks.”
मामला मनमीत सिंह बनाम यूनियन ऑफ इंडिया आदि का है। मामले में याचिकाकर्ता द्वारा माननीय हाईकोर्ट को यह अवगत कराया गया था कि उसके द्वारा नौ लाख रुपयों का लोन स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक से साढ़े बारह प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर पर लिया गया था। जब उसके द्वारा पूरा लोन चुका दिया गया, तब उसने नो ड्यूज सर्टिफिकेट के लिए बैंक में अप्लाई किया। तब उसे पता लगा कि बैंक के द्वारा उससे 27 लाख रुपए मांगे गए हैं, जबकि उसे केवल 17 लाख रुपए देने थे ।जिसकी उसने पहले स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में शिकायत भी की।
आरबीआई के ओंबड्समैन को शिकायत करने के बावजूद उसकी शिकायत उसे बिना सुने बंद कर दी गई।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने कहा कि आरबीआई के द्वारा वर्तमान में जिस तरीके से बैंकों को छूट दी जा रही है वह दरअसल बैंकों को गरीब उपभोक्ताओं को लूटने की छूट है , क्योंकि गरीब उपभोक्ताओं के पास ना तो इतना समय होता है ,और ना इतना पैसा होता है कि उनसे मनमाने ढंग से वसूला गए ब्याज के पैसे के खिलाफ वो कानूनी लड़ाई लड़ सकें । अदालतों के पास पहले ही इतना काम है कि ना चाहते हुए भी कानूनी लड़ाई सालों खिंच जाती है, और इसी बात का फायदा आज रिजर्व बैंक आफ इंडिया और बैंक उठा रहे हैं।