उत्तराखण्ड में धधक रहे जंगल, आग लगने के बाद ही विभाग को आता है क्या होश, कहाँ गई फायर प्रोटक्शन वॉल

कोटद्वार। उत्तराखण्ड में पिछले कुछ दिनों से जंगलों में आग लगने की करीब 22 घटनाएं सामने आई हैं। इस वर्ष इन घटनाओं को मिलाकर उत्तराखण्ड में  वन अग्नि की कुल घटनाएं 373 इस वर्ष हो गई है।

शुक्रवार को वह  वनाग्नि की 10 घटनाएं हुई, जो शनिवार को बढ़कर 22 हो गईं।गढ़वाल में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के आरक्षित वन क्षेत्र में  एक, नंदा देवी राष्ट्रीय राजमार्ग पार्क में एक, राजाजी टाइगर रिजर्व में एक , रुद्रप्रयाग वनप्रभाग में एक और लैंसडौन वन विभाग में आग लगने के दो मामले सामने आए हैं।

रामनगर वन विभाग में एक, तराई पूर्वी वन विभाग में नौ, हल्द्वानी वनप्रभाग में चार, बागेश्वर वन प्रभाग के आरक्षित क्षेत्र में जंगल की आग में एक में आग लगने का एक मामले सामने आया है।

अधिकारियों के मुताबिक कुछ जगहों पर आग पर काबू पा लिया गया है। मगर कुछ जगह पर आग पर काबू पाने में वन विभाग के कर्मचारियों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वन विभाग के कर्मचारी स्थानीय ग्रामीणों के साथ मिलकर परंपरागत तरीके से आग बुझा रहे हैं।

उत्तराखंड विकास पार्टी ने कहा कि इन 22 सालों में वन विभाग के द्वारा की गई लापरवाहियां और भ्रष्टाचार की वजह से आज जंगलों में आग लगने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। उत्तराखण्ड  विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि कि अंग्रेजो के समय की फायर प्रोटक्शन वॉल, आज कैसे और क्यों गायब हुई इसका कोई जवाब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं के पास नहीं है। उन्होंने कहा कि आधुनिक युग में पुराने जमाने से ज्यादा आग लगने की घटनाएं हो रही हैं और उन्हें कंट्रोल करने के तरीके नए जमाने में वन अधिकारियों के पास नहीं है, और उसके बाद ये विश्व गुरु बनने का दावा करते हैं। एडवोकेट जोशी ने कहा कि उत्तराखण्ड विकास पार्टी का मानना है कि परंपरागत तरीके से ही जंगल की सुरक्षा हो सकती है, मगर भ्रष्टाचार ने जंगल की सुरक्षा को खतरे में डाला हुआ है और भेद खुलने के डर से ग्रामीणों का सहयोग केवल तब लिया जाता है, जब मामला हाथ से निकल चुका होता है।

 

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