नए कानून के कई प्रावधान पुलिस को शक्ति के व्यापक दुरुपयोग का बढ़ावा देंगे: बार काउंसिल ऑफ दिल्ली, मद्रास हाई कोर्ट ने भी नए कानूनों के खिलाफ दायर याचिका में केंद्र सरकार से मांगा जवाब

चेन्नई। मोदी सरकार द्वारा नए भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के खिलाफ मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। तमिलनाडु के एक अधिवक्ता ने हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका में संवैधानिक उल्लंघनों का हवाला देते हुए केंद्र सरकार के नए आपराधिक क़ानूनों के हिंदी नामकरण को चुनौती दी है।

वहीं, बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने नए क़ानूनों को स्थगित कर इनकी संसदीय जांच की मांग उठाई है।

जनहित याचिका थूथुकुडी (तमिलनाडु) के वकील बी. रामकुमार आदित्यन ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि जिन तीन नए कानूनों ने पुराने कानूनों की जगह ली है, उन्हें अंग्रेजी नाम दिया जाए।

वकील ने अपनी याचिका का निपटारा होने तक केंद्रीय गृह मंत्रालय को तीन नए आपराधिक कानूनों को लागू करने से रोकने की भी मांग की है। याचिकाकर्ता आदित्यन ने कहा है कि भारत में 28 राज्य और आठ केंद्र शासित प्रदेश हैं, लेकिन केवल नौ राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों की आधिकारिक भाषा हिंदी है। याचिकाकर्ता ने कहा कि देश की लगभग 43.63 प्रतिशत आबादी ही हिंदी बोलती है और बाकी अन्य भाषाएं बोलते हैं।

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, आदित्यन ने 2011 की जनगणना के एक आंकड़े का हवाला देते हुए कहा कि तमिलनाडु में केवल 3.93 लाख लोग ही हिंदी बोल सकते हैं, इसके बावजूद केंद्र ने देश के तीन सबसे महत्वपूर्ण आपराधिक कानूनों का नाम हिंदी और संस्कृत में रखने का फैसला किया है।

याचिकाकर्ता ने कहा कि कानूनों का नामकरण हिंदी में करने से गैर-हिंदी भाषी लोगों को बड़ी मुश्किलें होंगी। उन्होंने इस तथ्य का भी हवाला दिया कि सुप्रीम कोर्ट और अधिकांश उच्च न्यायालयों की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है।

आदित्यन ने अपनी याचिका में कहा है कि हिंदी और संस्कृत में कानूनों का नामकरण वकीलों, कानून पढ़ाने वाले शिक्षकों, न्यायिक अधिकारियों और वादियों के अधिकारों का उल्लंघन है।

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी) ने नए अपराध कानूनों को स्थगित करने और नए सिरे से संसदीय जांच की मांग की है। बीसीडी का तर्क है कि सरकार के पास इन कानूनों को लागू करने की न तो संवैधानिक और न ही विधायी क्षमता है।

बार काउंसिल ऑफ दिल्ली ने कहा है कि नए कानूनों के विभिन्न प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के विपरीत हैं।साथ ही कई ऐसे प्रावधान हैं जो पुलिस को ‘शक्ति के व्यापक दुरुपयोग’ को बढ़ावा देंगे।

केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को लिखे पत्र में बीसीडी ने सुझाव दिया कि नए कानूनों को नई संसद में गहन चर्चा और बहस के बाद ही लागू किया जा सकता है।

बीसीडी ने नए आपराधिक कानूनों के विभिन्न प्रावधानों की आलोचना की है। विशेष रूप से पुलिस हिरासत की अधिकतम अवधि को 15 दिन से बढ़ाकर 90 दिन करने की आलोचना करते हुए बीसीडी ने इसे ‘अत्याचारी और दमनकारी’ बताया है।

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