वर्ष 2022 में 29 पर्वतारोहियों की मौत से भी नहीं चेती मोदी की डबल इंजन सरकार, अभी भी हादसे की जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं भाजपा सरकार

 देहरादून। उत्तराखण्ड को मुख्य रूप से एक पर्यटक प्रदेश के रूप में जाना जाता है। मगर इन 24 सालों में भाजपा और कांग्रेस की सरकारों ने उत्तराखण्ड के पहाड़ी इलाकों की इस कदर अनदेखी की, कि उनके विधायकों को गैरसैंण जैसी जगह जिसकी समुद्र तल से ऊंचाई करीब  1630 मीटर है, वहाँ जाने में भी ठंड लगने लगी। ऐसे में पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यटन की सुविधाओं और जिम्मेदारियों के बारे में भाजपा और कांग्रेस की किसी भी सरकार ने चिंतन मनन नहीं किया और यही कारण है कि आज तक राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कारों में किसी भी निजी कंपनी या व्यक्ति को किसी भी श्रेणी में कोई भी पुरस्कार हासिल नहीं हो पाया है। उत्तराखण्ड के मूल निवासी भी राष्ट्रीय पर्यटन पुरस्कार तब प्राप्त कर सके हैं, जब वह उत्तराखण्ड छोड़ देश के अन्य भागों के पर्यटन से अपने जीविका का निर्वहन कर रहे हैं। इससे समझा जा सकता है कि उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार पर्यटन के प्रति कितनी संवेदनशील है।इसी संवेदनहीनता की वजह से उत्तराखण्ड के उच्च हिमालय क्षेत्र में ट्रेकिंग के लिए अभी तक कोई मानक परिचालन प्रक्रिया (एस.ओ.पी.) नहीं बनी है, जबकि पिछले दो वर्षो की ट्रैकिंग के दौरान करीब 38 ट्रैक्टर्स अब तक जान गवा चुके है।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सह सचिव सुनील रावत ने आरोप लगाया कि राज्य में ट्रेकिंग के लिए नीति तो है, लेकिन इसे लागू करने के लिए कोई मानक प्रचलन प्रक्रिया/ एसओपी नहीं है। वर्ष 2022 में द्रोपदी के डांडा में 29 पर्वतारोहियों की मौत के बाद भी इसी तरह एसओपी का मुद्दा जोर-जोर से उठा था, लेकिन तब से अब तक ट्रैक्टर्स की सुरक्षा के लिए मानक तय करने का मुद्दा पर्यटन और वन विभाग के बीच फुटबॉल बन गया है। सुनील रावत ने आरोप लगाया कि मोदी की डबल इंजन की सरकार इन दो सालों में यह तक तय नहीं कर पाई कि पर्यटन विभाग और वन विभाग में से मानक परिचालन प्रक्रिया कौन बनाएगा और ना ही मोदी की डबल इंजन सरकार को इस बात की फुर्सत हुई कि दोनों की समन्वय टीम बनाकर मानक परिचालन प्रक्रिया तय कर दे।

अब सहस्त्रताल हादसे के बाद सरकार यह कह रही है कि एसओपी बनाई जाएगी।

नेशनल एडवेंचर फाउंडेशन के उत्तराखण्ड चैप्टर के निदेशक मंजुल रावत कहते हैं कि, पर्यटन विभाग की ओर से साहसिक गतिविधियों के लिए सभी जिलों में एक-एक अधिकारी तैनात हैं। ऐसे में ट्रेकिंग के लिए एक सुरक्षित गाइडलाइन बनाने और उसे लागू करने में पर्यटन विभाग को पीछे नहीं रहना चाहिए। मंजुल के मुताबिक स्थानीय ऑपरेटर को ट्रैकिंग की ट्रेनिंग देने, सुरक्षा के उच्च तकनीकी संसाधन विकसित करने, इंटरनेट एग्रीगेटर से बचने के प्रावधान भी होने चाहिए, ऐसे लोगों का भी अनिवार्य रजिस्ट्रेशन होना चाहिए।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सह सचिव सुनील रावत ने आरोप लगाया कि स्थिति यह है कि सचिन कुर्वे जो कि पर्यटन सचिव हैं, वह यह कह रहे हैं कि उच्च हिमालय क्षेत्र में ट्रैकिंग को वन विभाग रेगुलेट करता है। पर्यटन विभाग को एसओपी नहीं बनानी है, यह कार्य वन विभाग को करना है और आर. के. सुधांशु प्रमुख सचिव वन यह कह रहे हैं कि मुख्य सचिव के निर्देश के बाद वन विभाग के सहयोग से पर्यटन विभाग उच्च हिमालय क्षेत्र में ट्रेकिंग के लिए एसओपी तैयार करेगा। दोनों विभाग एक दूसरे का सहयोग कर यह तय करेंगे कि किस तरह ट्रैकिंग को रेगुलेट किया जाए। यह बताता है कि मोदी की डबल इंजन सरकार ट्रैक्टर्स की  जान माल की सुरक्षा के प्रति कितनी चिंतित है।

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