पंचायती चुनाव बना कानूनी अखाड़ा, हाई कोर्ट ने आज भी एक अयोग्य घोषित प्रत्याशी को चुनाव में प्रतिभाग करने की दी अनुमति

सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ में हुई। दरअसल, नरेंद्र सिंह देवपा डीडीहाट से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने नामांकन भी किया था, लेकिन रिटर्निंग अधिकारी ने उनका नामांकन इस आधार पर निरस्त कर दिया कि उन्होंने अपने पूर्व के आपराधिक केसों का जिक्र नॉमिनेशन फॉर्म में नहीं किया था। 

वहीं, याचिकाकर्ता नरेंद्र सिंह देवपा का कहना था कि जो नामांकन पत्र का प्रारूप राज्य निवार्चन आयोग की तरफ से बनाया गया है, वो राज्य पंचायती राज नियमावली की धारा 9 के विरुद्ध है, क्योंकि वो आपराधिक केसों में पहले ही बरी हो चुके हैं। इसलिए उस कॉलम को भरना जरूरी नहीं था। वर्तमान में राज्य चुनाव आयोग ने एक्ट को दरकिनार कर उनका नॉमिनेशन फार्म रद्द कर दिया।

याचिकाकर्ता नरेंद्र सिंह देवपा ने पहले इस मामले को उत्तराखंड हाईकोर्ट की एकलपीठ में चुनौती दी थी, जिसे एकलपीठ ने निरस्त कर दिया था। इसके बाद उन्होंने मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में एकलपीठ के आदेश को चुनौती दी। खंडपीठ ने एक्ट के विरुद्ध जाकर उनके नामांकन पत्र को निरस्त करने के आदेश पर रोक लगा दी और नरेंद्र सिंह देवपा को चुनाव में प्रतिभाग करने की अनुमति दे दी ।

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राज्य निर्वाचन आयोग से पूछा कि क्या चुनाव के सिंबल जारी हो गए हैं? इस पर आयोग की तरफ से कहा गया कि नामांकन पत्रों की स्क्रूटनी हो चुकी है। जिनका फॉर्म सही नहीं था, उसे एक्ट के विरुद्ध मानकर रिटर्निंग अधिकारी ने निरस्त कर दिया। इसके साथ ही बैलट पत्र छपने के लिए प्रेस में भेज दिए गए हैं।

इस पर कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि इलेक्शन हुआ नहीं है, बल्कि प्रोसेस में है। न्यायालय में पीड़ितों की याचिकाएं विचाराधीन हैं, लेकिन सिंबल आवंटन से पहले कैसे बैलट पेपर की प्रिंटिंग की जा सकती है ?  कौन उम्मीदवार क्या सिंबल चाहता है, उसकी पसंद का ख्याल नहीं रखा गया है। 

पढ़ें—

 

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *