नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को मोदी सरकार से उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें बीएसएफ सहित सीएपीएफ जवानों को उच्च पदस्थ पुलिस और सीएपीएफ अधिकारियों के निजी आवासों में लगाने का आरोप लगाया गया है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को उस याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय और सीमा सुरक्षा बल (BSF) को नोटिस जारी किया जिसमें पुलिस के उच्चाधिकारियों और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के वरिष्ठ अधिकारियों के निजी आवासों पर घरेलू काम के लिए बीएसएफ और सीएपीएफ के जवानों को लगाकर मेनपॉवर के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है। यह पीआईएल यानी जनहित याचिका बीएसएफ के एक सेवारत डीआईजी संजय यादव ने दायर की है।
मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय और सीमा सुरक्षा बल को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। साथ ही मामले को अगले साल जनवरी के लिए सूचीबद्ध किया है। याचिका में कहा गया है कि जवानों का ऐसा घोर दुरुपयोग, खासकर तब जब सीएपीएफ और असम राइफल्स में 83 हजार से ज्यादा पद खाली हैं राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून-व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा है
याचिका में कहा गया है कि यह एक आम बात हो गई है जिसमें बीएसएफ के कुछ जवानों को सीमा या कानून-व्यवस्था की ड्यूटी से हटाकर वरिष्ठ अधिकारियों के निजी घरों में घरेलू काम करने के लिए लगा दिया जाता है। यहां तक कि जवानों को कथित तौर पर अधिकारी के कुत्ते की देखभाल के लिए भी लगा दिया जाता है। इस तरह के दुरुपयोग से खजाने पर भी अनावश्यक बोझ पड़ता है।
याचिकाकर्ता (जो बीएसएफ में एक सेवारत उप महानिरीक्षक हैं) का दावा है कि उनको इस तरह की कुप्रथा की सीधी जानकारी है। याचिका में दलील दी गई है कि स्थिति की गंभीरता को देखते हुए और कथित कुप्रथा को सुधारने के लिए कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने 21 नवंबर 2016 को एक कार्यालय ज्ञापन जारी किया था।
इस कार्यालय ज्ञापन में सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और असम राइफल्स के प्रमुखों, केंद्रीय पुलिस संगठनों और राज्य सरकारों के पुलिस महानिदेशकों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया था कि आवासों में तैनात जवानों, वाहनों, निजी सुरक्षा आदि जैसी सुविधाओं को रिटायरमेंट के एक महीने के भीतर ही वापस ले लिया जाए।
कार्यालय ज्ञापन में यह भी कहा गया था कि यदि कोई रिटायर अधिकारी निर्देशों का पालन करने में विफल रहता है तो उससे उन सुविधाओं के लिए भुगतान करने का निर्देश जारी किया जाए। ऐसे अधिकारी जो लोग बिना अनुमति के तैनात जवानों और सुविधाओं को वापस करने में विफल रहते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग की ओर से कार्यालय ज्ञापन जारी होने के बाद बीएसएफ ने ऐसे 131 कर्मियों की एक लिस्ट बनाई जो विभिन्न सेवानिवृत्त पुलिस और सीएपीएफ अधिकारियों के साथ बिना अनुमति के काम कर रहे थे। याचिका में कहा गया है कि बिना अनुमति के तैनात जवानों की कुल संख्या इससे कहीं ज्यादा है।
याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि लिस्ट बनाए जाने के बावजूद बीएसएफ के अधिकारियों ने बिना अनुमति के तैनात जवानों को वापस बुलाने या ऐसे जवानों के इस्तेमाल के लिए रिटायर अधिकारियों से पैसे वसूलने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। जवानों को वापस बुलाने के कुछ मामले हो सकते हैं लेकिन बिना अनुमति के जवानों को तैनात करने की आम प्रथा बेरोकटोक जारी है।
याचिकाकर्ता ने यह भी दावा किया कि उसने एक कानूनी नोटिस के जरिए इन मुद्दों पर प्रकाश डाला लेकिन अधिकारियों ने स्थिति को सुधारने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। याचिका में कहा गया है कि वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से जवानों के दुरुपयोग और देश की सुरक्षा पर इसके बुरे प्रभाव का सही-सही अंदाजा लगाने के लिए एक स्वतंत्र प्राधिकरण की ओर से विस्तृत जांच की जानी चाहिए।