पूर्व सीबीआई अधिकारियों के खिलाफ हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया फैसला

नई दिल्ली। माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली हाईकोर्ट का वह निर्देश बरकरार रखा, जिसमें दिल्ली पुलिस के पूर्व आयुक्त नीरज कुमार और इंस्पेक्टर विनोद कुमार पांडे के खिलाफ सीबीआई दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। यह निर्देश वर्ष 2000 में सीबीआई में प्रतिनियुक्ति के दौरान धमकाने, अभिलेखों में हेराफेरी और जालसाजी के आरोपों के बाद दिया गया था। जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की खंडपीठ 2001 में दो व्यक्तियों द्वारा दायर रिट याचिकाओं में हाईकोर्ट के आदेशों के खिलाफ अधिकारियों की अपीलों पर विचार कर रही थी, जिसमें अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई। कथित अपराधों के समय, कुमार और पांडे क्रमशः संयुक्त निदेशक और निरीक्षक के रूप में सीबीआई में प्रतिनियुक्त थे।

“सीबीआई की रिपोर्ट सर्वोत्तम रूप से एफआईआर दर्ज होने से पहले प्रस्तुत की गई एक प्रारंभिक जांच रिपोर्ट होती है। हालांकि, एफआईआर दर्ज होने से पहले कानून में ऐसी जांच की आमतौर पर परिकल्पना नहीं की जाती है। इसलिए यह कोई निर्णायक रिपोर्ट नहीं है, जिस पर संवैधानिक न्यायालय को शिकायतों में सामग्री या आरोपों के आधार पर यदि कोई हो, किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने के बारे में अपना निष्कर्ष दर्ज करने के अधिकार को समाप्त करने के लिए भरोसा किया जा सके।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां हाईकोर्ट को वैकल्पिक उपाय मौजूद हैं, वहां रिट याचिकाओं को हतोत्साहित करना चाहिए, वहीं वैकल्पिक उपाय न्यायालय को प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने से नहीं रोकते। न्यायालय ने कहा कि पुलिस को शिकायत की वास्तविकता का आकलन किए बिना ही एफआईआर दर्ज करनी चाहिए। अदालत ने कहा कि शिकायतकर्ताओं ने पुलिस से संपर्क किया। हालांकि, कथित तौर पर सीबीआई अधिकारियों की जांच करने में अनिच्छा के कारण पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। ऐसी परिस्थितियों में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश देने में हाईकोर्ट के विवेकाधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा कि संज्ञेय अपराधों के बारे में उसकी राय प्रथम दृष्टया निष्पक्ष है और जांच की स्वतंत्रता को प्रभावित नहीं करती। अदालत ने कहा, “यदि संवैधानिक अदालत ने याचिकाओं पर विचार करने और दोनों अधिकारियों के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने में अपने विवेकाधिकार का प्रयोग किया है और यह संतुष्ट है कि प्रथम दृष्टया उनके विरुद्ध संज्ञेय अपराध का गठन हुआ है तो हमें ऐसे विवेकाधिकार में हस्तक्षेप करने का कोई उचित कारण नहीं दिखता।”

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेशों में संशोधन किया और कहा कि जांच विशेष प्रकोष्ठ के बजाय दिल्ली पुलिस द्वारा कम से कम सहायक पुलिस आयुक्त के पद के अधिकारी द्वारा की जाएगी और कुमार तथा पांडे को जांच में सहयोग करना होगा। न्यायालय ने सी.बी.आई. की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट पर जांच अधिकारी द्वारा विचार करने की अनुमति दी, लेकिन कहा कि यह निर्णायक नहीं है। अदालत ने निर्देश दिया कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए जांच शीघ्रता से अधिमानतः तीन महीने के भीतर पूरी की जानी चाहिए। अदालत ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने से अधिकारियों के प्रति कोई पूर्वाग्रह नहीं होगा, क्योंकि उन्हें इसमें भाग लेने का अवसर मिलेगा और किसी भी समापन या आरोप-पत्र को कानूनी रूप से चुनौती दी जा सकती है।

 

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