हरिद्वार । मातृसदन हरिद्वार के संस्थापक स्वामी शिवानंद महाराज ने पत्रकार वार्ता में बताया कि उच्च न्यायालय उत्तराखंड द्वारा अवैध रूप से गंगा जी के पाँच किलोमीटर के दायरे में संचालित 48 स्टोन क्रशरों को तत्काल प्रभाव से बंद करने का जो आदेश दिया गया है।
यह आदेश अब जनसामान्य के संज्ञान में है और इसकी भाषा स्वयं अपने आप में पर्याप्त है। लेकिन आज का गंभीर प्रश्न यह है कि जब स्वयं माननीय उच्च न्यायालय ने 03 मई 2017 को पारित आदेश में स्पष्ट रूप से हरिद्वार में गंगा किनारे संचालित पाँच किलोमीटर के भीतर स्थित सभी स्टोन क्रशरों को बंद करने का निर्देश दिया था, और यह आदेश भी केवल मातृसदन द्वारा अवमानना याचिका दायर करने के पश्चात लागू हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दिनांक 24 अगस्त 2017 को एक शासनादेश द्वारा इन 48 स्टोन क्रशरों को बंद किया गया—तो फिर बिना माननीय उच्च न्यायालय के किसी और आदेश के, इन क्रशरों को कैसे और क्यों पुनः चालू किया गया?
यह भी तथ्य है कि इन क्रशरों को पुनः खोलने का निर्णय न तो राज्य सरकार के विधि विभाग की उचित सलाह पर आधारित था, और न ही यह निर्णय संविधान सम्मत प्रक्रिया का पालन करता है। इसके विपरीत, तत्कालीन महाधिवक्ता द्वारा प्रदत्त ग़लत और भ्रमित करने वाली विधिक राय के आधार पर यह अवैध कार्य किया गया|
उन्होंने कहा कि यह भी स्पष्ट उल्लेखनीय है कि जब 2017 में 48 स्टोन क्रशर गंगा जी से पाँच किलोमीटर के दायरे में अवैध रूप से चल रहे थे और उन्हें बंद कर दिया गया था, तो इसके पश्चात इस दायरे में स्थापित सभी क्रशर स्वाभाविक रूप से अवैध हैं। इसलिए माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों की अवमानना के रूप में ऐसे सभी क्रशरों को भी तत्काल बंद किया जाना चाहिए।
इसके साथ ही, उन्होंने मांग की, कि जिन अधिकारियों की मिलीभगत और भ्रष्ट कार्यशैली के कारण इन अवैध क्रशरों को 2016 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा पारित आदेश दिनांक 06-12-2016 के पश्चात भी चलने दिया गया, उनसे पर्यावरण की क्षति का पूरा हर्जाना—प्रदूषण, अवैध खनन और प्राकृतिक संसाधनों की क्षति का मूल्य—सहित ब्याज वसूल किया जाए।