नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय ने टिहरी जिले की एक पंचायत चुनाव उम्मीदवार की अयोग्यता पर रोक लगा दी है और निर्वाचन अधिकारी को आदेश दिया है कि वह उम्मीदवार को फिलहाल जारी पंचायत चुनाव में भाग लेने की अनुमति दे।
हाई कोर्ट में यह याचिका टिहरी जिले के भुत्सी गांव से जिला पंचायत सदस्य पद के लिए नामांकन भरने वाली महिला सीता देवी ने निर्वाचन अधिकारी के उस आदेश के विरुद्ध दायर की थी, जिसमें उनके बैंक की तरफ से जारी एक ‘नो ड्यूस सर्टिफिकेट’ के फर्जी होने के शक के आधार पर खारिज कर दिया गया था। हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जी.नरेंद्र और जस्टिस आलोक माहरा की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई करते हुए पंचायत चुनाव में महिला की अयोग्यता पर रोक लगाते हुए उन्हें चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी।
बेंच ने निर्वाचन अधिकारी द्वारा सहकारी बैंक से पूछताछ या किसी विशेषज्ञ की राय के बिना भी प्रमाणपत्र को मनमाने ढंग से फर्जी ठहराने की आलोचना करते हुए कहा, ‘ऐसा लग रहा है कि निर्वाचन अधिकारी ने संभवतः दूसरे उम्मीदवार के चुनाव को प्रभावित करने के लिए स्पष्ट रूप से अवैध तरीके से काम किया है।’
पीठ ने आगे कहा, ‘निर्वाचन अधिकारी ने यह आरोप लगाते हुए शुरू में प्रमाणपत्र पर आपत्ति जताई कि इसे बैंक के सचिव द्वारा जारी नहीं किया गया था, जबकि उनके इस दावे का समर्थन करने वाले कोई नियम मौजूद नहीं है। याचिकाकर्ता ने बाद में बैंक से सचिव द्वारा जारी एक और प्रमाणपत्र लाकर जमा किया, जिसमें कहा गया था कि महिला को कोई ऋण नहीं दिया गया था और उस पर कोई राशि बकाया नहीं है। दूसरी बार जारी किया गया प्रमाणपत्र प्रस्तुत करने के बावजूद, नामांकन फिर भी खारिज कर दिया गया, जिससे आपत्तिकर्ता ही एकमात्र उम्मीदवार रह गया।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि इस बारे में कोई औपचारिक आदेश तक पारित नहीं किया गया- केवल इतना कि याचिकाकर्ता का नाम खारिज किए गए उम्मीदवारों की सूची में डाल दिया गया था। अदालत ने जवाब दिया कि वह ‘इन स्पष्ट अवैधताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती, जो पूर्व-नियोजित, प्रेरित और देश के कानून की घोर अवहेलना प्रतीत होती हैं।’
संविधान के अनुच्छेद 243-ओ(बी) का हवाला देते हुए, जो पंचायत चुनावों पर सवाल उठाने से संबंधित है, अदालत ने स्पष्ट किया कि वर्तमान रिट याचिका ‘याचिकाकर्ता के नामांकन को अवैध रूप से अस्वीकार करने पर सवाल उठाती है, जिसके लिए कोई प्रभावी उपाय नहीं है,’ और यह कि मांगी गई राहत ‘चुनावों को आगे बढ़ाने के लिए है, न कि चुनाव को नुकसान पहुँचाने के लिए।’
उच्च न्यायालय ने राज्य चुनाव आयुक्त से तत्काल हस्तक्षेप करने की भी मांग की है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भविष्य में ऐसी अवैध कार्रवाइयों को रोकने के लिए रिटर्निंग अधिकारियों को उचित निर्देश जारी किए जाएं।