बैंकिंग प्रणाली में आया तरलता का गंभीर संकट, एक लाख करोड़ अतिरिक्त की सख्त जरूरत

नई दिल्ली। आर्थिक उथल पुथल के बीच आरबीआई को संतुलन स्तर पर तरलता बनाए रखने के लिए इस महीने के अंत सक बैंकिंग प्रणाली में अतिरिक्त एक लाख करोड़ रुपये डालने पड़ सकते हैं। एसबीआई की रिपोर्ट में बताया गया है कि फरवरी के अंत तक बैंकिंग प्रणाली में 1.6 लाख करोड़ रुपये की कमी थी। तरलता का औसत घाटा करीब 1.95 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

बैंकिंग प्रणाली हाल के महीनों में गंभीर तरलता संकट का सामना कर रही है। यह एक दशक से अधिक समय में तरलता की सबसे खराब स्थिति है।

बैंकिंग प्रणाली में नवंबर, 2023 में 1.35 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की तरलता थी। हालांकि, दिसंबर में यह नकारात्मक होकर 65,000 करोड़ रह गई, जो जनवरी में बढ़कर 2.07 लाख करोड़ और फरवरी में 1.59 लाख करोड़ हो गई।

केंद्रीय बैंक ने तरलता बढ़ाने के लिए फरवरी में रेपो दर को 0.25% घटा दिया था मगर रेपो रेट घटाने से भी कोई खास सुधार नहीं दिखा।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने आरोप लगाया कि राजनीति का गिरता स्तर देश को आर्थिक रूप से दिवालिया होने की तरफ ले जा रहा है। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चन्द्र जोशी ने कहा कि संसद और विधानसभाओं में देश के विकास पर चर्चा होने की बजाय सांप्रदायिक व व्यक्तिगत चर्चायें होती हैं। जीएसटी लागू करते समय कहा गया था कि इसका स्लैब 4 से 8 प्रतिशत के बीच होगा मगर आसमान बढ़ती मंहगाई में भी ये स्लैब नजर नहीं आ रहे हैं। 

उन्होंने कहा कि किसी भी धर्म के प्रति कट्टरता से देश का विकास नहीं होता। किसानों और मजदूरों के लिए सरकारी सहायताओं को धीरे धीरे खत्म किया जा रहा है। सरकारी शिक्षा और चिकित्सा इस मामले में मुख्य हैं। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बीमा गरीब इंसान के लिए एक भ्रम है और सरकारों के लिए सेफ्टी वॉल्व। एडवोकेट जगदीश चन्द्र जोशी ने कहा कि बीमा की आड़ में सामुदायिक स्वास्थ्य को बेमौत मारा जा रहा है और यह काम हो जाने के बाद बीमा योजना भी बंद कर दी जाएगी।

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