देहरादून। उत्तराखण्ड में 25 से अधिक जगहों पर लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया और मतदान में भाग नहीं लिया। जिसमें अधिकांश जगह में सबसे बड़ी वजह वन्य कानून की वजह से मूल भूत सुविधाओं जैसे सड़कों, पेयजल लाइनों, बिजली की तारों का गाँवों तक न पहुँच पाना है। इसके अलावा कुछ क्षेत्र में पेयजल समेत कुछ अन्य समस्याओं की वजह से लोगों ने मतदान का बहिष्कार किया।
राज्य में चकराता क्षेत्र के द्वारा और विशलाड़ खत के 12 गाँव के ग्रामीणों ने मतदान नहीं किया। इसके अलावा चमोली जिले के आठ गाँवों एवं पिथौरागढ़ के धारचूला में तीन मतदान केदो पर मतदान नहीं हुआ। पहाड़ों में बुनियादी सुविधाओं के अभाव की वजह से लोगों में धैर्य खत्म होता जा रहा है, और इस वजह से उनके द्वारा मतदान का बहिष्कार किया गया। सड़क न होने पर ग्रामीणों को कई बार डंडी कंडी पर मरीजों को अस्पताल ले जाना पड़ता है। कई गाँवों में राज्य बनने के 24 सालों बाद तक भी सड़क नहीं पहुंच पाई है। सड़क ना बन पाने की मुख्य वजह वन कानून है। वन भूमि हस्तांतरण के मामले सालों साल लटके होने की वजह से सड़क नहीं बन पा रही हैं और जब कई साल बाद वन्य भूमि कानून से लड़ भिड़कर कोई स्वीकृति मिल भी जाती है, तब तक उस सड़क के निर्माण का बजट इतना बढ़ चुका होता है कि उस सड़क के निर्माण के लिए दोबारा से स्वीकृतियों की कार्यवाही करनी पड़ती है।
प्रदेश में 2024 तक राज्य सरकार की 741 विकास परियोजनाओं पर काम इसलिए शुरू नहीं हो पा रहा क्योंकि इसमें वन विभाग की स्वीकृति नहीं मिल पाई है। इसमें सबसे अधिक 614 प्रस्ताव सड़कों के हैं, पेयजल के 47, सिंचाई विभाग के पांच पारेषण लाइन के 6, जल विद्युत परियोजनाओं के 02, खनन के 06 एवं अन्य के 61 मामले लंबित हैं, जिसमें 4650 हेक्टेयर वन भूमि का स्थानांतरण होना है।