गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए लड़नी पड़ेगी लंबी लड़ाई: पूरण सिंह भंडारी

ऋषिकेश। उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग की। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के उपाध्यक्ष पूरण सिंह भंडारी ने कहा कि मूल निवासी की पहचान का संकट केवल भाषा ही दूर कर सकती है। 

पुरण सिंह भंडारी ने कहा कि हमें  राज्य 42 शहादतों के बाद मिला है, शहीदों के सपनों का उत्तराखण्ड बनाने की जिम्मेदारी हम राजनैतिक दलों की है। उन्होंने कहा कि अखंड भारत की पहचान ही विभिन्न भाषा संस्कृति है और गढ़वाली कुमाऊँनी संस्कृति इतनी समृद्ध है कि आजादी के 78 सालों बाद भी बिना किसी सरकारी संरक्षण के जिंदा है।

उन्होंने कहा कि मलयालम, कन्नड़, तमिल, तेलुगु, पंजाबी, नेपाली, डोगरी आदि भाषाओं ने कील सरकारी संरक्षण की वजह से इतनी तरक्की की है अगर उन्हें इतने वर्षों तक सरकारी संरक्षण नहीं मिला होता तो इस समय ये भाषायें भी लुप्तप्राय होने की श्रेणी में आ गई होतीं।

उन्होंने कहा कि भाजपा कांग्रेस का उद्देश्य गढ़वाली कुमाऊँनी भाषा समाज और संस्कृति का संवर्धन रहा होता तो राज्य बनने के बाद ही भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल कर दिया जाता और राजधानी गैरसैंण बना दी गई होती, मगर दोनों दलों द्वारा गढ़वाली कुमाऊँनी संस्कृति समाज की लगातार उपेक्षा की गई।

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