मूल निवास खत्म किए जाने का गुस्सा मोदी सरकार के खिलाफ श्रीनगर की सड़कों पर उतरा

श्रीनगर। उत्तराखण्ड राज्य बनने के साथ उत्तराखण्ड के मूल निवासियों के खिलाफ सरकारों की कार्यवाहियों ने अपनी इंतहां लांघ दी है। शुरू में भाजपा कांग्रेस की सरकारों को लगा कि गढ़वाल और कुमाऊं के भोले भाले लोग अपने खिलाफ हो रही साजिशों को समझ नहीं पाएंगे। इन मुद्दों पर क्षेत्रीय दलों की बेरुखी ने भी मूल निवासियों के हितों पर डाका डालने का ही काम किया। गाहे  बगाहे उठने वाली आवाजों पर खुद मूल निवासियों ने ध्यान नहीं दिया, जिसकी परिणीति यह रही कि मूल निवास के मुद्दे पर विधानसभा में ओम गोपाल रावत कि काजी निजामुद्दीन से हुई भिड़ंत पर हरिद्वार में ओम गोपाल रावत के पुतले तो फूंके गए मगर पहाड़ में एक अजीब किस्म की खामोशी छाई रही। और उसी खामोशी से भाजपा कांग्रेस को उत्तराखण्ड के मूल निवासियों के हकों पर डाका डालने का और मौका मिल गया।

अब जब मूल निवासियों को समझ आया कि व्यक्तिगत रूप से उनके बच्चों को नुकसान होने लगा है और वो खुद बाहरी निवासियों के अनैतिक कार्यों का विरोध नहीं कर पा रहे हैं तो बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के उत्तराखण्ड की मूल निवासी जनता ने सड़क पर उतरना शुरू कर दिया। 

देहरादून, हल्द्वानी, कोटद्वार और टिहरी के बाद आज श्रीनगर में जनता ने सड़कों पर उतर कर मोदी राज के स्थाई निवास प्रमाणपत्र और भू कानून का विरोध किया। 

इस अवसर पर उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है कि उत्तर प्रदेश के जमाने में हमारे मूल अधिकार सुरक्षित थे और भूमि प्रतिबंध लागू थे। उत्तराखण्ड की वर्तमान आवश्यकताओं को देखते हुए इन्हें और कड़ा बनाया जाना चाहिए था मगर मोदी राज में एक देश एक कानून के तहत इन्हें खत्म कर दिया गया है। उत्तराखण्ड विकास पार्टी का मानना है किए असीम विविधता वाले इस देश को आप एक ही लाठी से नहीं हांक सकते हैं। आपको इस देश की विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान करना ही पड़ेगा और उनके संरक्षण के लिए बनाई गई नीतियों को अपनाना ही पड़ेगा, मगर मोदी राज में ठीक इसका उलट हो रहा है।

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