नई दिल्ली। सरकारी क्षेत्रों में पहले से ही सरकारों ने नौकरियों में कटौती की हुई है। बीएसएनएल, भेल आदि जैसे सार्वजनिक उपक्रम भारत में आम नागरिक के लिए नौकरी का महत्वपूर्ण जरिया थे, जिनसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप लाखों लोगों की आजीविका जुड़ी हुई थी। जहां अब नौकरी पाना अब एक सपना बन कर रह गया है। रेलवे हर साल लाखों लोगों के लिए रोजगार के रास्ते खोलता था, अब एक ओर नौकरियाँ निकाली नहीं जा रहीं, दूसरी वेंडर सिस्टम में गरीब का शोषण किया जा रहा है।
भाजपा सरकार लगातार निजी क्षेत्रों को सपोर्ट देने की बात करती है, मगर निजी क्षेत्रों का प्रमुख उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है। ऐसे में जैसे ही किसी बड़ी कंपनी को लगता है कि कर्मचारियों को निकाल कर भी मुनाफा बढ़ाया जा सकता है, तो वो तुरंत कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखा देती है।
अब बढ़ती बेरोजगारी के बीच गूगल जैसी कंपनी ने वर्ष 2023 में अपने 12 हजार कर्मचारियों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। और उन्हें हटाने के लिए गूगल ने करीब 17 हजार 5 सौ करोड रूपए खर्च किए, जो यह बताता है कि 12 हजार कर्मचारियों का बोझ गूगल पर किस तरीके से बढ़ रहा था , कि उसे 17 हजार 500 करोड रुपए चुकाते हुए कोई दिक्कत ही महसूस नहीं हुई । और यह केवल वर्ष 2023 की ही बात नहीं है इस नए साल में उस महीने में जब आदमी को सबसे ज्यादा उम्मीद नए साल से होती है, गूगल जैसी कंपनी ने एक हजार से ज्यादा लोग साल 2024 के पहले महीने में नौकरी से हटा दिए। जिसके लिए गूगल ने करीब 560 करोड रुपए खर्च किए।
यह मामला इसलिए भी भयावह है क्यों कि गूगल कोई ऐसे उत्पाद नहीं बनाता जो आज के युग में अप्रासंगिक हो गए हों बल्कि गूगल आज के युग के साथ-साथ नए युक्त में प्रासंगिक उत्पादों के लिए काम करता है । ऐसे में गूगल जैसी कंपनी से कर्मचारियों को छोटी-मोटी नहीं भारी संख्या में बाहर करना अच्छी अर्थव्यवस्था के सबूत नहीं है। यह तो बड़ी कंपनियों के हाल हैं, छोटी छोटी कम्पनियों के कर्मचारी भी ऐसे ही हालातों का सामना कर रहे हैं।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने मांग की की केंद्र सरकार को निजी क्षेत्र को इस तरीके का प्रोत्साहन देने की बजाय, कि वह यहां करोड़ का घोटाला कर विदेश भाग जाएं, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि सरकारी पैसे का लाभ गरीब आदमी तक पहुंच सके। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी अपने विज्ञापन के लिए खर्च पर भरोसा नहीं करती, इसलिए आम जन को यह पता नहीं होता है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी इस देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में कितने महत्वपूर्ण योगदान देती हैं । उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि यदि देश की सबसे तेज तर्रार जाति माने जाने वाले आईएएस इन सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों को ढंग से नहीं चला सकते हैं, तो इसका मतलब है कि वह देश भी ढंग से नहीं चला सकते। यानी कि ऐसी स्थिति में देश की आर्थिक स्थिति वाकई खतरे में है।