श्रीनगर। गढ़वाल के श्रीनगर, खिर्सू इलाके में गुलदार का खौफ कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। बीते दिनों श्रीनगर और खिर्सू में एक- एक बालक को अपना शिकार बनाने के बाद, शनिवार को श्रीनगर के भक्तियाना में पीएनबी के पीछे बारहवीं की एक छात्रा दीपिका का अपने आंगन में गुलदार से आमना सामना हो गया। गुलदार भी शायद इस स्थिति के लिए तैयार नहीं था, तो पेड़ पर चढ़कर गुर्राने लगा। दीपिका शोर मचा कर तुरंत घर के अंदर चली गई। लोगों द्वारा शोर मचाए जाने पर गुलदार अपर भक्तियाना की ओर भाग गया। वन विभाग की ओर से शनिवार को एक और शूटर को तैनात किया गया है। साथ ही गुलदार को शूट करने के लिए ऐठाना रोड पर मचान भी बनाया गया है।
उधर श्रीनगर नगर क्षेत्र में सीसीटीवी में एक साथ दो गुलदार भी कैद हुए हैं। श्रीनगर क्षेत्र में बढ़ रही गुलदारों की सक्रियता से शहर में भय का माहौल बना हुआ है। शाम को अंधेरा बढ़ते ही बाजारों से तुरंत भीड़ कम हो जा रही है। जिलाधिकारी गढ़वाल की ओर से शाम छह बजे बाद बाजार बंद किए जाने पर कारोबारियों का व्यापार भी प्रभावित हो रहा है। जिला व्यापार सभा के अध्यक्ष वासुदेव कंडारी ने कहा कि बाजार में शाम के समय ही अधिकतर लोग खरीदारी करने के लिए निकलते हैं। कर्फ्यू लगने के कारण व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जिसको देखते हुए भीड़भाड़ वाले क्षेत्र में कर्फ्यू बनाए जाने का औचित्य नहीं था।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि मानव और जंगली जानवरों के संघर्ष को जंगली जानवरों की हत्या करके नहीं रोका जा सकता है, उसके लिए वन विभाग को ऐसे उपाय करने चाहिए ताकि जंगली जानवर शहरों और गांव की तरफ आने पर बाध्य न हो। उन्होंने कहा कि जंगलों में अंधाधुंध अवैध कटान और शिकार की वजह से जंगली जानवरों के लिए जंगल में भोजन पानी की उपलब्धता कम होती जा रही है। जिस वजह से वह मानवों पर हमला कर रहे हैं। एडवोकेट जोशी ने कहा कि पुराने समय से ही हिंसक जंगली जानवर गांव के आसपास रहते थे, और अक्सर देखे जाते थे। मगर वह आम इंसानों पर कभी हमला नहीं करते थे। पुराने समय में आदमखोर केवल वह जानवर होता था जिसको किसी चोट या बीमारी की वजह से जंगली जानवर पकड़ने में दिक्कतें आ जाती थी। उन्होंने कहा कि मानव जंगली जानवरों का प्राकृतिक शिकार नहीं है, ऐसे में इस तरीके की अप्राकृतिक घटनाओं का बढ़ना बताता है, कि जंगल की देखरेख भाजपा सरकार के द्वारा ठीक से नहीं की जा रही है, और जंगलों को केवल दुधारू गाय की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।