परियों का देश खैट पर्वत बनेगा योग और अध्यात्म का शिक्षा केंद्र: सी.ए. राजेश्वर पैन्यूली

नई दिल्ली सनातन जीवन शैली के अभिन्न अंग रहे योग, ज्योतिष और प्राकृतिक चिकित्सा-स्वास्थ्य आदि को वर्तमान आधुनिक जीवन शैली में नियमित करने की जरूरत समाज के हर तबके की है । माननीय प्रधान मंत्री जी ने हमेशा ही योग और प्राकृतिक स्वास्थ्य परंपरा सर्वोपरि रखा है । इस दिशा में उनके सतत प्रयासों से ही आज योग विश्व पटल पर “अंतराष्टीय योग दिवस” के रूप में स्थापित हो चुका है। योंग- ज्योतिष- प्राकृतिक स्वास्थ्य चिकित्सा और धार्मिक पर्यटन का खूबसूरत संस्थागत स्वरूप राष्ट्र को शिखर पर ले जाने की क्षमता रखता है।

आम जन से खास तबके की ओर विस्तारित हो रही इस योग परंपरा को दैवीय शक्तिपीठों और सुदूर पर्वतीय प्रकृति की पवित्रता को एक सशक्त अकादमिक-सांस्कृतिक गतिविधि केंद्र की तरह विकसित किया जा सकता है। ज्ञान की सनातनी परंपराओं और विज्ञान की आधुनिक शिक्षण प्रणालियों को संयुक्त रूप से संस्थागत स्वरूप देते हुवे “योग विध्यापीठो” की स्थापना का नियोजित प्रयास निश्चित रूप से किसी भी क्षेत्र के बढ़त का कारण बंन जाएंगे।

‘योग-विध्यापिठ” जैसी सांस्कृतिक अकादामिक संस्थान की लिए पुरातन आस्था से अलोकीत-शक्ति व साधना स्थल से निकटता सर्वोत्तम चयन होगा। देवभूमि की पर्वतीय प्राकृतिक धर्म क्षेत्रों में इस प्रकार के प्रयास क्षेत्रीय आर्थिकी को प्रभावित करेंगी ही। इससे सुदूर प्रांतों और विदेशी प्रशिक्षुओं – नागरिकों के मध्य अपनी समृद्ध अकादमिक सांस्कृतिक विरासत का प्रसार भी होगा। योग और संस्कृत महाविध्यालयों से निकले छात्र, दुनिया भर में भारतीय योग और संस्कृत का परचम लहरा सकेंगे।
मुख्य शैक्षणिक परिसर : अतिरिक्त भूमि की व्यवस्था
इस तथ्य को स्वीकारते हुवे की, पर्वतीय क्षेत्रों में मैदानी क्षेत्रों से इतर निर्माण की संरचनाओं और तकनीकी के इस्तेमाल की जरूरत होती है। कारण केवल भूगर्भीय खतरों से बचाव ही नहीं है बल्कि एक ही स्थान पर बड़ी खुली भूमि की अनुपलब्धता के साथ ही भूमि की किसी विशाल स्ट्रक्चर के भार को लंबे समय तक वहन करने सकने की क्षमता (careering capacity) पर ध्यान देना भी जरूरी माना जाना है। इसके साथ ही सुदूर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों की जलवायु – मौसम चक्र भी भवन के आर्किटेक्ट-डिजायन को प्रभावित करते है।

उपलब्ध संसधान, विकास के आधुनिक प्रचलित मानकों और स्थानीय आवश्यकताओं के मध्य संतुलन बनाते हुवे, ‘योग-विध्यापिठ -सांस्कृतिक अकादामिक संस्थान जैसी दूरदर्शी योजना / व्यवस्था के बारे में विचार किया जाए,। ऐसे में, परियों के देश के नाम से मशहूर “खैट पर्वत” जिसका पर्वतीय लोकसंस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है का ध्यान सबसे पहले आता है।

रहस्यमयी रोमांचकारी “खैट पर्वत क्षेत्र को” उसकी पूरी खूबियों के साथ विश्व स्तरीय योगपीठ / विद्यापीठ” जैसे विचार से विकसित करना दूरदर्शिता होगी। समुद्र तल से 7500 फीट की ऊंचाई पर टिहरी झील से सटा हुआ खैट पर्वत और इससे लगा हुआ भू –क्षेत्र स्तरीय “योगपीठ” के रूप में विकसित किए जाने का मुख्य आधार बन सकता है। इसी “खैट पर्वत क्षेत्र” के साथ ही अन्य पट्टियों तक फैले पर्वतीय प्राकृतिक संपदाओ, सांस्कृतिक धरोहरों और सनातनी परंपराओं को आधुनिक वैज्ञानिक तौर तरीकों में पिरोकर सफलता पूर्वक व्यवस्थित “विश्वविध्यालय परिसर” की तरह विकसित किया जा सकता है।

परिकल्पित “योगपीठ / विद्यापीठ परिसर” के सभी संकायों और प्रशासनिक जरूरतों आदि के लिए आवश्यक भूमि क्षेत्र के लिए समान सामाजिक सांस्कृतिक माहौल वाले अन्य लगते हुवे क्षेत्रों को इसमे जोड़ा जा सकता हैं। जैसे की सेम-मुखेम नागराज परिसर से लगा क्षेत्र (तप्पड़ क्षेत्र – ऊपरी रमोली लगभग 25 एकड़ भूमि) तथा ढूँगं मदार से लगे हुवे बूढ़ा-केदार-घनसाली मार्ग के निकट बालेश्वर महादेव शक्ति क्षेत्र (लगभग 20-25 एकड़ भूमि- भिलंगना ब्लॉक) की सुरम्य घाटी क्षेत्र, जहां पर्याप्त खुली भूमि उपलब्ध हैं।

इस प्रकार, खैट पर्वत के देवीय आभा क्षेत्र से लेकर– सेम-मुखेम के श्री कृष्ण की पवित्र साधन स्थली और बालेश्वर महादेव का शक्ति केंद्र तक “योग-विध्यापिठ-सांस्कृतिक अकादामिक संस्थान के विस्तृत परिसर” का विस्तार किया जा सकता है। “योगपीठ / विद्यापीठ के सभी परिसरों का निर्माण, मंदिर की धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उचित दूरी रखते हुवे बनाया जा सकता है।

प्रशानिक लिहाज से “योगपीठ / विद्यापीठ परिसर” के लिए तीनों ही चयनित क्षेत्र प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र में ही आते है। तीनों क्षेत्र समान प्राकृतिक-सांस्कृतिक व दैवीय आभा से युक्त है। “योगपीठ / विद्यापीठ को तीन अलग अलग के शैक्षणिक परिसर में विकसित किया जाना भौगोलिक अनुकूलन के साथ ही साथ अलग अलग पट्टियों तक फैले प्रतापनगर विधानसभा क्षेत्र में आम जान के विकास को भी बेहतर स्वरूप देंगे।

इससे प्रशिक्षित योग प्रशिक्षको को रोजगार के अधिक अवसरों के साथ साथ अंतराष्ट्रीय अनुभवो के आदान प्रदान का लाभ मिलेगा। स्थानिय पर्वतीय समाज में भी रोजगार के बढ़ते अवसर पलायन की दिशा व दशा और क्षेत्र पर उसके असर को बदल सकेंगे। और इस प्रकार यह प्रस्तावित “योगपीठ / विद्यापीठ परिसर” दुनिया भर में भारतीय-योग और विज्ञान की सनातनी परम्पराओं के संतुलित संयोग से “शिक्षा- पर्यटन– स्वास्थ्य और आजीविका संवर्धन” की दिशा में “मील का पत्थर” साबित हो सकता हैं।

अकादमिक-सांस्कृतिक “योग-विध्यापीठ” के लिए शुरुआती स्तर पर धन की व्यवस्था के लिए सरकार के अतिरिक्त पार्टनरशिप (पीपीपी) जैसे माध्यमों को अपनाया जा सकता है| योग और संस्कृत महाविध्यालयों से निकले छात्र दुनिया भर में भारतीय योग और संस्कृत का परचम लहरा सकेंगे।

अनुमानतः सिर्फ शिक्षण प्रशिक्षण के माध्यम से ही 1000-1500 स्थानीय शिक्षित युवाओं को सीधे और इससे कहीं अधिक लोगों को परोक्ष रूप से रोजगार के अवसर मिलेंगे| इस प्रकार यह पलायन रोकने के साथ ही रिवर्स पलायन का भी आधार बनेगा। सरकार को मुख्य रूप से सिर्फ और सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में मदद और संबंधित मंजूरी देनी होगी। ज़िसकी लागत भी सरकार धीरे -धीरे 5-10 सालो में रिकवर कर सकती है।

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