मोदी सरकार ने छठी अनुसूची के प्रावधानों को दरकिनार कर तीन हजार बीघा जमीन दी लीज पर, असम हाई कोर्ट ने जताई नाराजगी

गुवाहाटी। असम सरकार ने 3000 बीघा जमीन महाबल सीमेंट नाम की कंपनी को लीज़ पर देने का स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो कंपनी ने अदालत की ओर रुख किया था। स्थानीय लोगों ने भी सरकार के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की । 

न्यायमूर्ति संजय कुमार मेधी ने सुनवाई के दौरान अपनी टिप्पणी में कहा,“यह कैसी निर्णय प्रक्रिया है? मज़ाक है क्या ये? 3,000 बीघा का क्या मतलब समझते हैं? यह तो जिले का आधा हिस्सा हो जाएगा. कंपनी बहुत ही प्रभावशाली होगी तभी इतनी ज़मीन उसे दी गई है।”

कोर्ट ने रेखांकित किया कि दीमा हसाओ जिला संविधान की छठवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है जहां स्थानीय जनजातीय समुदायों के अधिकारों और हितों को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए। साथ ही, जिस क्षेत्र (उमरोंगसो) में ज़मीन आवंटित की गई है, वह पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र है। यहां गर्म पानी के झरने, प्रवासी पक्षियों और वन्यजीवों का ठिकाना है।

हाई कोर्ट ने नॉर्थ कछार हिल्स ऑटोनॉमस काउंसिल (NCHAC) को आदेश दिया कि ज़मीन आवंटन की पूरी नीति और रिकॉर्ड अदालत में पेश किए जायें।

यह केस उन ग्रामीणों द्वारा दायर किया गया, जिन्हें अपनी बेदखली के खिलाफ अदालत का रुख करना पड़ा। दूसरी ओर, महाबल सीमेंट्स ने भी याचिका दायर कर अपने व्यावसायिक कामकाज को बाधित करने वाले “गैरकानूनी तत्वों” से सुरक्षा की मांग की है।

कंपनी की ओर से अधिवक्ता, जी गोस्वामी ने दलील दी कि ज़मीन उन्हें 30 साल की लीज़ पर विधिवत टेंडर प्रक्रिया के बाद मिली है। वहीं, स्थानीय आदिवासियों की ओर से अधिवक्ता एआई कथार और ए रोंगफर ने कहा कि ग्रामीणों को अपनी ज़मीन से बेदखल नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने फिलहाल कहा कि वह आवंटन की पूरी प्रक्रिया की जांच करेगी. मामले की अगली सुनवाई 1 सितंबर को होगी।

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