नई दिल्ली। शीर्ष न्यायालय ने मेघालय उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली मोदी सरकार की याचिका को अगंभीर मानते हुए मोदी सरकार पर पांच लाख का जुर्माना ठोक दिया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार के पास विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से आदेश को चुनौती देने का कोई तुक या औचित्य नहीं है। पीठ के समक्ष प्रस्तुत याचिका सरासर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को चेतावनी दी जाती है कि वे ऐसी अगंभीर याचिकायें भविष्य में दायर ना करें। हम हाई कोर्ट के अपेक्षित निर्णयों और आदेशों में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। विशेष अनुमति याचिका को लागत सहित खारिज किया जाता है, क्योंकि उच्च न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता (केंद्र सरकार) के वकील ने कहा था कि मामला पूरी तरह पिछले निर्णय के अनुसार लिया गया था।
शीर्ष न्यायालय उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की इस दलील पर गौर करने के बाद मामले का निपटारा कर दिया था और कहा कि इसी तरह की याचिका को पहले उदाहरणों के अनुरूप खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र के पास इस विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से आदेश को चुनौती देने का कोई आधार नहीं है।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि मोदी सरकार में तानाशाही बढ़ रही है, कर्मचारियों को उनके हकों से महरूम किया जाता है, और मजबूरी में कर्मचारी जब न्यायालय से अपने हक में फैसला पाता है, तो जानबूझ कर लटकाने और कर्मचारी को परेशान करने की नियत से इस तरह की याचिकायें लगाई जाती हैं। उत्तराखण्ड पीसीएस के आईएएस संवर्ग में प्रमोशन के लिए अधिकारियों को शीर्ष न्यायालय में कंटेम्प्ट पेटीशन दाखिल करनी पड़ी थी। जिस पार्टी की सरकारें सीबीआई जॉच रुकवाने के लिए शीर्ष अदालतों का दरवाजा खटखटाती हों, उस पार्टी की नियत और नीति समझी जा सकती है।