एनआरसी और मूल निवास क्यों डर रही है भाजपा: उविपा

उत्तराखण्ड विकास पार्टी के उपाध्यक्ष पूरण सिंह भंडारी ने उत्तराखण्ड में मूल निवास 1950 को तुरंत लागू करने की मांग की।

पूरण सिंह भंडारी ने कहा कि देश के विधान से इतर उत्तराखण्ड में अलग विधान बनाए जा रहे हैं, जो कि उत्तराखण्ड के मूल निवासियों  के हितों की पर कुठाराघात कर रहे हैं। जो विधान उत्तराखण्ड में बनाए जा रहे हैं उनसे बाहरी और रोहिंग्या लोगों को उत्तराखण्ड में बसाने में मदद मिल रही है।

 

 

पूरण सिंह भंडारी ने कहा कि इस राज्य की स्थापना का मुख्य उद्देश्य पहाड़ की समस्याओं का निराकरण करना था , जबकि इस राज्य के बनने के बाद पहाड़ की समस्याओं का निराकरण होने की बजाय पहाड़ पर समस्याओं का पहाड़ बनता जा रहा है । इस वजह से आम आदमी को पहाड़ से लगातार पलायन करना पड़ रहा है।

उन्होंने कहा कि नेता पहले ही देहरादून और हल्द्वानी पलायन कर गए हैं, इसलिए नेताओं को पहाड़वासियों के दुख दर्द से कोई लेना-देना नहीं है , और यही कारण है कि भाजपा और कांग्रेस के नेता ना तो मूल निवास 1950 की बात करते हैं, ना ही गढ़वाली कुमाऊनी और जौनसारी को भाषा का दर्जा दिलाने की बात करते हैं।

यहां तक की भारतीय जनता पार्टी की सरकार में समूह ग  की परीक्षा में गढ़वाली कुमाऊनी और जौनसारी की अनिवार्यता को हटा दिया गया, मगर कांग्रेस ने इसका कोई विरोध नहीं किया। उन्होंने कहा कि पूर्व विधायक ओम गोपाल रावत ने जब सदन में मूल निवास की मांग की थी, तब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेताओं को सांप सूंघ गया था। अगर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के नेता उस वक्त वाकई पहाड़ के हितों के हितैषी होते तो आज यह स्थिति ना आती।

उन्होंने कहा कि आश्चर्य जनक है कि भारतीय जनता पार्टी देशभर में एनआरसी लागू करने का ऐलान करती फिरती है, मगर उत्तराखण्ड में एनआरसी लागू करने से डर रही है, क्योंकि उसका राजनीतिक लाभ यहां कुछ मिलने वाला नहीं है , उल्टा ही भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक को इससे नुकसान हो जाएगा ।

उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी को उत्तराखण्ड में एनआरसी सबसे पहले लागू करनी चाहिए। जिस तरह झुग्गी झोपड़ियों को बचाने के लिए भाजपा तुरंत अध्यादेश ले आती है उसी तरह मूल निवास को लागू क्यों नहीं कर रही जबकि मूल निवास उत्तर प्रदेश के समय में लागू था, इसलिए उसमें नियम शर्तें भी यथावत हैं।

 

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