लेह । संविधान की छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करना और पूर्ण राज्य के दर्जे को लेकर चल रहा आंदोलन अब एक बड़े दौर में पहुंच चुका है ।
वर्ष 2019 में जम्मू कश्मीर से अलग कर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था, जिसका लद्दाख के लोगों ने खुलकर स्वागत किया था। मगर केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से लद्दाख के मूल निवासियों को दिक्कतें होने लगी थी। सन 2019 से पहले लद्दाख में चार विधानसभा क्षेत्र लेह, नुब्रा ,कारगिल और जांस्कर थे। क्योंकि लद्दाख में अब विधानसभा नहीं है, तो यह क्षेत्र निष्क्रिय हो गए हैं। वर्तमान में लद्दाख में एक लोकसभा सीट है। दोनों जिलों में लद्दाख स्वायत पहाड़ी विकास परिषद है।
परिषद केंद्र सरकार द्वारा संचालित है। इस वजह से यहां नियुक्त अधिकारी स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा करने में असक्षम साबित हो रहे हैं। इसी वजह से पिछले साल भी सोनम वांगचुक के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने बड़ा भारी प्रदर्शन किया था। सोनम वांगचुक का कहना है कि केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने से जिस तरीके का ढांचा विकसित हुआ है, उससे स्थानीय लोगों की शासन में भागीदारी खत्म सी हो गई है और केंद्र के अधिकारी यहां मनमानी कर रहे हैं। जिस चीज की मूल निवासी मांग कर रहे हैं, अधिकारी उसकी बजाय मनमर्जी से बजट खर्च कर रहे हैं, जिससे मूल निवासियों को उनका वाजिब हक नहीं मिल पा रहा है साथ ही बजट का दुरुपयोग हो रहा है। जिस वजह से उन्होंने पिछले साल अनशन भी किया था और उन्हें केंद्र सरकार ने होम अरेस्ट भी करा था, साथ ही साथ उनसे मिलने आए पत्रकारों को भी प्रशासन द्वारा परेशान किया गया था।
आंदोलनकारी संगठनों की यहां मुख्य चार मांगे हैं। जिसमें:-
लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देना।
जनजातीय क्षेत्र के लिए छठी अनुसूची में लद्दाख को शामिल करना।
लोकसभा की सीट एक से बढ़कर दो करना और
लद्दाख के लिए अलग लोक सेवा आयोग स्थापित करना शामिल है ।
साथ ही लंबे समय से कारगिल में जांस्कर और लेह में नुब्रा को जिला का दर्जा देने की मांग की जा रही है।