इंफाल। मणिपुर में मैतई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एस.टी.) का दर्जा देने के मणिपुर हाई कोर्ट के 27 मार्च 2023 के आदेश से उस विवादित पैराग्राफ को हटा दिया गया है, जिसकी वजह से मणिपुर में हुई हिंसा में 200 से अधिक लोगों की जान चली गई थी।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य से मैतई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने पर विचार करने का आग्रह किया था। जस्टिस गोलमेई गाईफुलशिलू की एकल न्यायाधीश पीठ ने बुधवार को एक समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान आदेश के उसे पैराग्राफ को रद्द कर दिया क्योंकि यह पैराग्राफ सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के रुख के विपरीत था। उस पैराग्राफ में राज्य सरकार को आदेश प्राप्त होने की तारीख से मैतई/मितेई समुदाय को एस.टी. सूची में शामिल करने के लिए चार हफ्ते का समय दिया गया था।
मणिपुर की आबादी में मैतई लोगों की संख्या करीब 53 फीसदी है और वह ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं। जबकि आदिवासी जिनमें नागा और कुकी शामिल है 40% है, और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 मई 2023 को हाई कोर्ट के निर्देश को अप्रिय बताया और कथित अशुद्धियों के कारण आदेश पर रोक लगाने पर विचार किया। पीठ ने कहा था कि हाई कोर्ट का यह आदेश गलत है।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने कहा कि उत्तराखण्ड के हालत भी भारतीय जनता पार्टी ने मणिपुर जैसे बना दिए हैं। धीरे धीरे यहां के अधिसंख्य पहाड़ी अल्पसंख्यक होते जा रहे हैं और उनकी जमीनों पर बाहरी समुदाय के लोग कब्जे किए जा रहे हैं, जिससे आज नहीं कल यहां की स्थितियां भी विकट होने जा रही हैं। अगर सरकार उत्तराखण्ड के गढ़वाली कुमाऊनी समाज को एसटी का दर्जा नहीं देती है, तो उसे भूमि सुधार कानून कानून पर ध्यान लगाना चाहिए और मूल निवास 1950 तुरंत लागू करना चाहिए नहीं तो उत्तराखण्ड को भी मणिपुर बनते देर नहीं लगेगी। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार को यह समझना चाहिए कि जिस तरीके से जन सैलाब बिना किसी राजनीतिक नेता और दबाव के सड़कों पर अभी अपने अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा हुआ है लोकतंत्र की रक्षा के लिए भाजपा को जनता की आवाज को सुनते हुए उत्तराखण्ड में मूल निवास 1950 और भूमि सुधार कानून तुरंत लागू करना चाहिए।