मूल निवास 1950 उत्तर प्रदेश के जमाने से चला आ रहा है, तो अब क्यों किया भाजपा ने खत्म

कोटद्वार। उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने मूल निवास 1950 को उत्तराखण्ड की आत्मा बताया। उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि उत्तराखण्ड बनने के मूल निवास 1950 को हटाना उत्तराखण्ड के मूल निवासियों के साथ अत्याचार किया जाना है। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में हर उत्तराखण्डी का मूल निवास प्रमाण पत्र 1950 के निवास के आधार पर बनता था। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में मूल निवास 1950 के संबंध में कभी भी किसी को भी कोई दिक्कत नहीं हुई, तो फिर उत्तराखण्ड बनने के बाद ऐसी क्या हालात बने कि भाजपा को मूल निवास 1950 हटाना पड़ गया और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस इस विषय पर मौन रही।

उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि भाजपा और कांग्रेस उत्तराखंड की मूल आत्मा को खत्म करना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने न केवल मूल निवास 1950 को हटाया वरन समूह ग की भर्ती में गढ़वाली कुमाऊनी और जौनसारी की अनिवार्यता को भी खत्म कर दिया, जो बताता है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस उत्तराखण्ड को मात्र औपनिवेश जैसा मानती हैं, और उत्तराखंड राज्य निर्माण जिस बोली, भाषा, संस्कृति और समाज को बचाने के लिए किया गया था, उसी बोली, भाषा,संस्कृति और समाज को खत्म करना चाहती हैं। इसमें भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों की नीति और नियत में कोई फर्क नहीं है।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के समय जमीदारी उन्मूलन और भू सुधार अधिनियम 1950 की धाराओं में भारतीय जनता पार्टी ने वह बदलाव किए कि उत्तर प्रदेश के समय में उत्तराखण्ड की सुरक्षित भूमि भी उत्तराखण्ड बनने के बाद असुरक्षित हो गई है।

एडवोकेट जगदीश चंद्र जोशी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरीके से देश में व्यवसायीकरण और एक देश एक नीति को लागू किया है, उससे गढ़वालियों और कुमाऊनियों की संस्कृति, समाज और भाषा को खतरा पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि भारत एक गणराज्य है और गण का मतलब ही गढ़वाल और कुमाऊं जैसे समाज हैं, जिनकी अपनी संस्कृति और भाषा अलग है। गणराज्य में हर संस्कृति और भाषा को महत्व दिया गया है। मगर भारतीय जनता पार्टी  इस विविध संस्कृति को खत्म कर रही है, और कांग्रेस इसका विरोध नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो गढ़वाली और कुमाऊनी भाषा, संस्कृति इतिहास की बात हो जाएंगे।

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