जिनेवा। मानवाधिकार मामलों पर यूएन के प्रमुख अधिकारी वोल्कर टुर्क ने अपने बयान में रूस, ईरान, सेनेगल, घाना, पाकिस्तान समेत कई देशों में चुनाव पर बात की. इस दौरान उन्होंने भारत का भी ज़िक्र किया। वोल्कर टुर्क ने कहा, “96 करोड़ मतदाताओं के साथ भारत का आगामी चुनाव अनोखा है. वो इस देश की धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक परंपराओं और इसकी महान विविधता की सराहना करते हैं, लेकिन उनकी कुछ चिंताएं भी हैं।”
टुर्क ने नागरिकों के अधिकारों पर ‘बढ़ती पाबंदियों’ के साथ-साथ, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और आलोचकों को ‘निशाना बनाए जाने’ तथा अल्पसंख्यकों, विशेषकर मुसलमानों के ख़िलाफ़ ‘नफ़रती भाषण और भेदभाव’ के बारे में चिंता व्यक्त की।उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चुनाव से पहले सभी की अर्थपूर्ण भागीदारी के लिए एक खुला माहौल होना बेहद अहम हो जाता है।
उन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड के बारे में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया। बीते महीने सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया जो इलेक्टोरल बॉन्ड बेचने वाला अकेला अधिकृत बैंक है, उसे निर्देश दिया था कि वो 12 अप्रैल, 2019 से लेकर अब तक ख़रीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को दे।
भारत ने टुर्क के इस बयान पर गहरी आपत्ति जताई है। यू एन में भारत के स्थाई प्रतिनिधि अरिंदम बागची ने कहा कि चुनाव के बारे में उनकी चिंतायें अनावश्यक हैं, और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को वास्तविक रूप में प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।
यह विवाद मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के द्वारा सिविल सोसाइटी के छह लोगों के माओवादी कनेक्शन के आरोप को खारिज करने के दौरान उठा है। जिसमें मुंबई हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने प्रशांत राही, प्रोफेसर जी एन साईबाबा, हेम मिश्रा, समेत छह लोगों को इन आरोपों से बरी कर दिया है।