नैनीताल। तथाकथित आंदोलनकारियों को आरक्षण का झुनझुना जिसके पीछे उन्होंने राज्य शहीदों के सपनों पर कुठाराघात करने वालों के साथ ही हाथ मिला लिए, अब फिर भारी पड़ सकता है। माननीय उच्च न्यायालय ने धामी सरकार से पूछ ही लिया कि तथाकथित राज्य आंदोलनकारियों को दस प्रतिशत आरक्षण किस आधार पर दिया गया है।
गौर मतलब है कि वर्ष 2017 में तथा कथित राज्य आंदोलनकारी को आरक्षण दिए जाने के मसले में माननीय हाईकोर्ट न ने कहा था कि, राज्य सरकार राज्य आंदोलनकारी को आरक्षण नहीं दे सकती क्योंकि राज्य के सभी नागरिक राज्य आंदोलनकारी थे। माननीय उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ सरकार ने कोई अपील नहीं की थी।
देहरादून निवासी भुवन सिंह सहित अन्य ने जनहित याचिका दायर कर इस एक्ट को असंवैधानिक बता निरस्त करने की मांग की। मुख्य न्यायाधीश ऋतु बाहरी एवम न्यायमूर्ति आलोक वर्मा की खंडपीठ में मामले की सुनवाई की।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट को बताया कि 2017 में इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्य सरकार राज्य आंदोलनकरियों को आरक्षण नहीं दे सकती, क्योंकि राज्य के सभी नागरिक राज्य आंदोलनकारी थे। इस आदेश को राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं दी। अब सरकार ने आरक्षण देने के लिए 18 अगस्त 2024 को कानून बना दिया, जो हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।
महाधिवक्ता ने कहा कि राज्य को कानून बनाने का अधिकार है। अभी सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए नई आरक्षण नीति तय करने के आदेश दिए हैं, वर्तमान में राज्य की परिस्थितियों बदल गई हैं, उसी कोआधार मानते हुए राज्य सरकार ने 18 अगस्त 2024 को आरक्षण संबंधी कानून बनाया है और इसी आधार पर लोक सेवा ने पद सृजित किए हैं।
उत्तराखण्ड विकासपार्टी ने कहा कि उत्तराखण्ड के हितों पर कुठाराघात करने के लिए भाजपा ने आरक्षण दिया है। उत्तराखण्ड आंदोलन तो आरक्षण विरोधी आंदोलन था ऐसे में आरक्षण की मांग कर रहे लोग उत्तराखण्ड आंदोलनकारी कैसे हो सकते हैं ? की