नई दिल्ली। उत्तराखण्ड सरकार के टूरिज्म बोर्ड ने कुछ साल पहले मसूरी के पास जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट में एडवेंचर टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए एक टेंडर जारी किया था। टेंडर हासिल करने के लिए तीन कंपनियों ने बोली लगाई थी। देश के मशहूर मीडिया घराने इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ये तीनों कंपनियां बाबा रामदेव के पुराने और विश्वस्त सहयोगी आचार्य बालकृष्ण के नियंत्रण में हैं।
इंडियन एक्सप्रेस में छपी ऐश्वर्या राज और धीरज मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तराखण्ड सरकार के टूरिज्म बोर्ड ने दिसंबर 2022 में यह टेंडर जारी किया था। इसके तहत 142 एकड़ जमीन, पार्किंग, रास्ते, हेलीपैड, वुडन हट्स, कैफे, दो म्यूजियम और एक ऑब्जर्वेटरी शामिल थी। ये सब सरकार ने पहले से बनवाया हुआ था, बस कंपनियों को इनका रखरखाव करना था. इसके लिए कंपनी को सरकार को सिर्फ 1 करोड़ रुपये सालाना देने थे।
टेंडर के लिए तीन कंपनियों ने बोली लगाई. इन तीन कंपनियों के नाम प्रकृति ऑर्गेनिक्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, भारुवा एग्री साइंस प्राइवेट लिमिटेड और राजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड है। कंपनी के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए दावा किया गया है कि प्रकृति ऑर्गेनिक्स और भारुवा एग्री साइंस इन दोनों कंपनियों में रामदेव के करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण की 99% से ज्यादा की हिस्सेदारी है।
इसके बाद 1 फरवरी 2023 को टेंडर के लिए बोली लगी. राजस एयरोस्पोर्ट्स ने 1 करोड़ रुपये की बोली लगाई, जबकि भरुवा एग्री साइंस ने 65 लाख और प्रकृति ऑर्गेनिक्स ने 51 लाख रुपये की बोली लगाई। साफ है कि सबसे ऊंची बोली राजस की थी। दावा किया गया कि चूंकि बाकी दोनों कंपनियां भी बालकृष्ण की ही थीं, इसलिए बोली के दौरान जो प्रतिस्पर्धा होनी चाहिए थी वह नहीं हो पाई थी।
जिस कंपनी को टेंडर मिला, उसमें भी बालकृष्ण की हिस्सेदारी थी। टेंडर मिलने से पहले बालकृष्ण की इसमें 25.01% हिस्सेदारी थी। लेकिन टेंडर मिलने के बाद उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 69.43% हो गई। यह भी दावा किया गया कि राजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स को टेंडर मिलने के बाद बोली लगाने वाली बाकी दो कंपनियों ने भी राजस में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है।
इसके अलावा, चार कंपनियों – भारुवा एग्रो सॉल्यूशन, भारुवा सॉल्यूशंस, फिट इंडिया ऑर्गेनिक और पतंजलि रिवोल्यूशन, जो सभी बालकृष्ण के स्वामित्व में हैं, ने मिलकर राजस एयरोस्पोर्ट्स एंड एडवेंचर्स में 33.25% हिस्सेदारी हासिल की। दावा किया गया कि यह टेंडर नियमों का उल्लंघन है, क्योंकि बोली लगाने वाली कंपनियों को यह लिखित रूप में देना होता है कि वे आपस में सांठगांठ करके टेंडर नहीं भर रही हैं।
अखबार ने इस बारे में जब टूरिज्म डिपार्टमेंट से पूछा तो एडवेंचर टूरिज्म विंग के डिप्टी डायरेक्टर अमित लोहानी ने बताया कि यह एक ओपन टेंडर ओपन था. इसमें कोई भी बोली लगा सकता था। अगर किसी की हिस्सेदारी दो-तीन कंपनियों में है तो यह कोई असामान्य बात नहीं है। वहीं, टेंडर जारी होने के समय उत्तराखण्ड पर्यटन विकास बोर्ड (UTDB) के CEO कर्नल अश्विनी पुंडीर का कहना है कि यह मिलीभगत नहीं है, क्योंकि ये कंपनियां कानूनी रूप से अलग हैं। हम कंपनियों और उनके बैकग्राउंड के आधार पर भेदभाव नहीं करते। सिर्फ ऊंची बोली लगाने वाली कंपनी को टेंडर जारी किया जाता है।
टेंडर में मिलीभगत के बारे में पूछे जाने पर राजस एयरोस्पोर्ट्स के प्रवक्ता ने अखबार को बताया कि कंपनी ने पिछले कुछ सालों में अलग-अलग निवेशकों से कैपिटल जुटाई है। कंपनी के सभी फैसले मैनेजमेंट टीम लेती है। टेंडर पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया के तहत मिला था। उन्होंने कहा कि किसी निवेशक को कंपनी में निवेश करने को मिलीभगत मानना तथ्यात्मक रूप से गलत और भ्रामक है।
उत्तराखंड सरकार की राजस को दिए जाने वाला यह कोई पहला प्रोजेक्ट नहीं है। हाल ही में उत्तराखंड सिविल एविएशन डेवलपमेंट अथॉरिटी (UCADA) ने राजस एयरोस्पोर्ट्स को एक और प्रोजेक्ट दिया। इसके तहत कंपनी को जोलीग्रांट से मसूरी के जॉर्ज एवरेस्ट एस्टेट तक हेली शटल सर्विस देनी थी।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी के सचिव एडवोकेट जगदीश चन्द्र जोशी ने कहा कि मोदी राज में उत्तराखण्ड के संसाधनों की खुली लूट चल रही है। उनकी पार्टी के सत्ता में आने के बाद इन संपत्तियों और कंपनियों की विधिक जाँच करवाई जायेगी। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड की परिसंपत्तियों पर पहला हम उत्तराखण्ड के मूल निवासियों का है, मगर मोदी सरकार उनके अधिकार तक उनको नहीं देना चाहती इसी लिए उत्तराखण्ड की परिसंपत्तियों के मामले में टेंडर की शर्तें ही इस लिहाज से बनाई जाती हैं कि मूल निवासी खुद ब खुद निविदा में प्रतिभाग करने लायक ही न रहे।