सीआरपीएफ को भारत संघ के सशस्त्र बल नहीं मानती मोदी सरकार

नई दिल्ली। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ के चालीस जवानों ने 2019 में जम्मू कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में शहादत दी थी। गत चार वर्ष में दर्जनों बार कन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा, केंद्र सरकार से यह मांग की गई है कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में पुरानी पेंशन बहाल की जाए।

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले एक साल से मिलने का समय नहीं दिया

 

एसोसिएशन ने इस संबंध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय मांगा था, जो अभी तक नहीं मिल सका है। पिछले साल जनवरी में सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने ‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए दिल्ली हाई कोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी।

हाई कोर्ट के पेंशन देने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया मोदी सरकार ने

उस मामले में केंद्र सरकार ने ओपीएस लागू करने की बजाए, दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में जाकर स्टे ले लिया।

मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बुधवार को देश के विभिन्न हिस्सों में पुलवामा के शहीदों की याद में आयोजित कार्यक्रमों में इस मुद्दे को जोरशोर से उठाया है। एसोसिएशन को उम्मीद थी कि पुलवामा शहीदी दिवस पर सरकार, सीएपीएफ में ओपीएस लागू करने जैसी घोषणा कर सकती है।

 

कोर्ट ने माना था ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’

कन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टियरस वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह ने बताया कि, सीएपीएफ के 11 लाख जवानों/अफसरों ने गत वर्ष ‘पुरानी पेंशन’ बहाली के लिए दिल्ली हाई कोर्ट से अपने हक की लड़ाई जीती थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को लागू नहीं किया। इस मामले में केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। जब केंद्र सरकार ने स्टे लिया, तभी यह बात साफ हो गई थी कि सरकार सीएपीएफ को पुरानी पेंशन के दायरे में नहीं लाना चाहती। हैरानी की बात तो ये है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल 11 जनवरी को दिए अपने एक अहम फैसले में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों ‘सीएपीएफ’ को ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ माना था। दूसरी तरफ केंद्र सरकार, सीएपीएफ को सिविलियन फोर्स बताती है।

अदालत ने इन बलों में लागू ‘एनपीएस’ को स्ट्राइक डाउन करने की बात कही। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, चाहे कोई आज इन बलों में भर्ती हुआ हो, पहले कभी भर्ती हुआ हो या आने वाले समय में भर्ती होगा, सभी जवान और अधिकारी, पुरानी पेंशन स्कीम के दायरे में आएंगे। मौजूदा समय में भी यह मामला सर्वोच्च अदालत के समक्ष लंबित है।

मोदी सरकार सीएपीएफ को ओपीएस नहीं देना चाहती है

हाई कोर्ट ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि ‘सीएपीएफ’, ‘भारत संघ के सशस्त्र बल’ हैं। इसका मतलब, सीएपीएफ भी आर्मी/नेवी/वायु सेना की तरह सशस्त्र बल हैं। इन्हें भी पुरानी पेंशन मिलनी चाहिए। दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि ‘सीएपीएफ’ में आठ सप्ताह के भीतर पुरानी पेंशन लागू कर दी जाए। अदालत की वह अवधि पिछले साल होली पर खत्म हो गई थी। तब तक केंद्र सरकार, उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ, सुप्रीम कोर्ट में तो नहीं गई, मगर अदालत से 12 सप्ताह का समय मांग लिया था। उस वक्त तक यह उम्मीद थी कि सरकार ओपीएस पर कोई सकारात्मक निर्णय ले सकती थी। जब वह अवधि भी खत्म हो गई, तो केंद्र सरकार ने ओपीएस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले लिया। इसका सीधा मतलब है कि सरकार, इन बलों को ओपीएस नहीं देना चाहती।  

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