रेलवे परियोजना के कारण हो रहे भू धसांव से टेंटों में रहने को मजबूर खगलिया गाँव के ग्रामीण

गढ़वाल। मोदी सरकार द्वारा जोर-शोर से पहाड़ों में रेल परियोजना पहुंच जाने को पहाड़ों का विकास बताए जाने की प्रक्रिया लगातार जारी है। मगर रेलवे परियोजना के कारण  गाँवों में जगह-जगह भू धंसाव हो रहे हैं। लोगों के मकानों में लगातार दरारें आ रही हैं। जिला और तहसील प्रशासन इन घरों का निरीक्षण तो करता है, मगर इन्हें मानव जनित नहीं, बल्कि प्राकृतिक आपदा बता देता है। जिला टिहरी से लेकर जिला गढ़वाल में जहां-जहां रेल परियोजना में सुरंगों का निर्माण किया गया है, उसके ऊपर के गाँव के निवासी अपने घरों के उजड़ने को बेबस होकर देख रहे हैं, क्योंकि ना तो सरकार इसे रेल परियोजनाओं द्वारा की जा रही लापरवाही मान रही है, और ना ही रेल परियोजना के अधिकारी यह मानने को तैयार हैं। कि उनके द्वारा लगातार पहाड़ों पर किए जा रहे विस्फोट और गलत खुदाई की वजह से पहाड़ धंस रहे हैं।

दिखाने को तो सरकार के द्वारा इन जगहों का भू स्थलीय निरीक्षण करवाया जा रहा है, मगर इतनी बड़ी परियोजना में क्या पहले सरकार के द्वारा भू स्तरीय निरीक्षण नहीं करवाया गया, और बिना भू-गर्भीय सर्वे के इतनी बड़ी परियोजना को स्वीकृति कैसे मिली।

पहाड़ों में ग्रामीण इस मानव जनित आपदा के कारण टेंटों में रहने के लिए मजबूर हो गए हैं। मगर उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो पा रही है।

खगालिया गाँव के ग्रामीण भी अपने घरों को छोड़कर टेंट में रहने को मजबूर है। उधर श्रीनगर में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल निर्माण से प्रभावित दो परिवारों ने परियोजना के खिलाफ धरना शुरू कर दिया है। प्रभावितों का कहना है कि परियोजना के पैकेज में 6 में बन रही सुरंग के चलते उनके आवासीय भवनों में दरारें आ गई हैं, जिससे कभी भी जानमाल की हानि हो सकती है।

पूर्व में परियोजना प्रबंधन से हुई वार्ता में उन्होंने 10 दिनों के भीतर समस्या का समाधान करने का आश्वासन दिया था। लेकिन तय समय भी जाने के बाद भी उनकी समस्या जस की तस बनी हुई है। धरना देने वालों में चमधार व फरासू गाँव के बलवंत सिंह भंडारी, चंद्र मोहन भंडारी, अनीता देवी, मनमोहन भंडारी, ओमप्रकाश भंडारी आदि मौजूद थे।

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