कालागढ़। कोटद्वार विधानसभा का अलग-थलग भाग कालागढ़ वन कानून का खामियाजा भुगत रहा है।कालागढ़ से कोटद्वार की दूरी मात्र 45 किलोमीटर होने के बावजूद वन कानूनों की आड़ में कालागढ़ वासियों को कोटद्वार तहसील और ब्लॉक मुख्यालय आने-जाने के लिए उत्तर प्रदेश के धामपुर नजीबाबाद होते हुए 110 किलोमीटर का चक्कर काटना पड़ता है।
अविवाहित उत्तर प्रदेश के समय में रामगंगा नदी पर बांध निर्माण के समय कालागढ़ के वन क्षेत्र में कॉलोनी का निर्माण हुआ था। उस समय वहां सैकड़ो लोग रहते थे। बांध निर्माण का काम पूरा होने के बाद सिंचाई विभाग की ओर से वन भूमि की वापसी की कवायत हुई और कई कॉलोनी को खाली करवा कर ध्वस्त करवा दिया गया। गढ़वाल जिले की सीमा में स्थित होने के कारण यहां के लोगों को अपने काम के लिए कोटद्वार तहसील और दुगड़ा ब्लॉक मुख्यालय आना पड़ता है।
यहां कोटद्वार प्रशासन की ओर से चार पोलिंग बूथ बनाए गए हैं। इनमें तीन बूथ रामगंगा इंटर कॉलेज कालागढ़ वह एक बूथ रामगंगा प्राथमिक विद्यालय में बनाया गया है। कालागढ़ में करीब 130 किलोमीटर दूर ढिकाला की कॉर्बेट बाल पाठशाला में 91 कर्मियों के लिए एक अलग बूथ बनाया गया है।
कालागढ़ के चार बूथों पर इस बार 2674 मतदाता गढ़वाल के सांसद का चुनाव करने के लिए वोट करेंगे। कालागढ़ भाजपा और कांग्रेस की सरकारों के लिए केवल वोट मांगने और पाने तक सीमित है । पूर्व में कालागढ़ को नगर पंचायत बनाने की घोषणा भी अभी तक कोरी ही साबित हुई है। वन कानूनों की बंदिशों के कारण यहाँ से लोगों का पलायन जारी है।
कोटद्वार से कालागढ़ के लिए चल रही जी एम ओ यू की बस सेवा भी 2021 में बंद कर दी गई थी। यहां पर सिर्फ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है। ऐसे में लोगों को यूपी से होते हुए अधिक समय और पैसा खर्च कर कोटद्वार पहुंचना होता है। जबकि कोटद्वार से पाखरो होते हुए कालागढ़ की दूरी केवल 45 किलोमीटर है।
लोगों का कहना है कि सरकार और जनप्रतिनिधियों की ओर से कालागढ़ मार्ग को लेकर अदालत में सही ढंग से पैरवी भी नहीं की गई। केवल चुनाव के दौरान वोट मांगने के लिए नेता आते हैं।