मोदी सरकार द्वारा चुनाव के दौरान सीसीटीवी फुटेज और वेब कास्टिंग को सार्वजनिक करने पर रोक लगाने से चुनावी निष्पक्षता पर विपक्ष ने किये सवाल खड़े

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने चुनाव आयोग की एक सिफ़ारिश को लागू किया और इसके बाद कांग्रेस समेत विपक्षी दल इस पर सवाल उठा रहे हैं। उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने इसे लोकतंत्र को कमजोर करने की ओर कदम बताया है। 

दरअसल केंद्र सरकार ने चुनाव आचार संहिता में संशोधन करते हुए चुनावी दस्तावेज़ों के एक हिस्से को आम जनता की पहुंच से रोक दिया है।

भारत सरकार के विधि और न्याय मंत्रालय ने शुक्रवार को चुनाव आयोग की सिफारिश के आधार पर सीसीटीवी कैमरा और वेबकास्टिंग फ़ुटेज को सावर्जनिक करने पर रोक लगा दी है।

चुनाव संचालन नियम, 1961 के नियम 93(2) (अ) में संशोधन से पहले लिखा था कि ‘चुनाव से संबंधित अन्य सभी कागजात सार्वजनिक जांच के लिए खुले रहेंगे।’

संशोधन के बाद इस नियम में कहा गया है कि ‘चुनाव से संबंधित इन नियमों में निर्दिष्ट अन्य सभी कागजात सार्वजनिक जांच के लिए खुले रहेंगे।’

इस बदलाव से चुनावी नियमों के अलग-अलग प्रावधानों के तहत केवल चुनावी पत्र (जैसे नामांकन पत्र आदि) ही सार्वजनिक जांच के लिए खुले रहेंगे।

उम्मीदवारों के लिए फॉर्म 17-सी जैसे दस्तावेज़ उपलब्ध रहेंगे लेकिन चुनाव से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और सीसीटीवी फ़ुटेज सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं रहेगी।

रिटर्निंग ऑफिसर के लिए जारी हैंडबुक में यह प्रावधान है कि उम्मीदवार या किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आवेदन किए जाने पर ऐसी वीडियोग्राफी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

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