नैनीताल। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय की डबल बेंच ने नैनीताल के पूर्व जिलाधिकारी द्वारा कुछ स्टोन क्रेशरों को अवैध खनन और भंडारण पर लगाये गए करोड़ों के जुर्माने को माफ करने संबंधी जनहित याचिका में सुनवाई की और अगली सुनवाई अगस्त माह के लिए तय कर दी है।
मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायधीश ऋतु बाहरी और न्यायमूर्ती राकेश थपलियाल की खण्डपीठ के सामने आज राज्य सरकार ने रिपोर्ट दाखिल की। राज्य सरकार की रिपोर्ट हिंदी में होने के कारण न्यायालय ने सरकार से इसका अंग्रेजी में अनुवाद कर पेश करने को कहा है।
सामाजिक कार्यकर्ता चोरलगिया नैनीताल निवासी भुवन पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा कि वर्ष 2016-17 में नैनीताल के तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा कई स्टोन क्रेशरों का अवैध खनन व भंडारण का जुर्माना करीब 50 करोड़ रुपया माफ कर दिया। जिलाधिकारी नैनीताल ने उन्ही स्टोन क्रेशरों का जुर्माना माफ किया जिनपर जुर्माना करोड़ो में था और जिनका जुर्माना कम था उनका माफ नही किया। जब इसकी शिकायत मुख्य सचिव, सचिव खनन से की गई तो उसपर कोई कार्यवाही नही हुई और साथ मे यह कहा गया कि यह जिलाधिकारी का विशेषाधिकार है।
जब याचिकाकर्ता द्वारा शासन से इसका लिखित रूप में जवाब मांगा तो उन्हें इसका जवाब नही दिया गया। इसके बाद उनके द्वारा इसमें सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जिलाधिकारी को किस नियमावली के तहत अवैध खनन व भंडारण पर लगे जुर्माने को माफ करने का अधिकार प्राप्त है की सूचना चाही गई। जिसके उत्तर में लोक सूचना अधिकारी, औद्योगिक विभाग उत्तराखंड द्वारा अवगत कराया गया कि लोक प्राधिकारी के कार्यालय में उक्त सूचना धारित नही है।
जनहित याचिका में कहा गया कि जब लोक प्राधिकार में उक्त नियम धारित नही है तो जिलाधिकारी के द्वारा कैसे स्टोन क्रेशरों पर लगे 50 करोड़ रुपये का जुर्माना माफ कर दिया। जबकि औद्योगिक विभाग के द्वारा 21 अक्टूबर 2020 को इसपर आख्या प्रस्तुत करने को कहा था जो प्रस्तुत नही किया गया। जनहित याचिका में कोर्ट से मांग की गई है कि इसपर कार्यवाही की जाय। क्योंकि यह प्रदेश राजस्व की हानि है।
उत्तराखण्ड विकास पार्टी ने आरोप लगाया कि सूचना का अधिकार से स्पष्ट हो चुका है कि भाजपा और कांग्रेस की सरकारों में खनन माफियाओं को लाभ पहुंचाने के लिए करोड़ों रुपए बिना नियम माफ किए जा रहे हैं और विपक्ष की भूमिका सामाजिक कार्यकर्ताओं को निभानी पड़ रही है, ऐसे में सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ झूठे मुकदमें दर्ज कर उन्हें प्रताड़ित करने की कोशिश की जा रही है।